पाराशरस्मृतिप्रस्तावः | Parashar Smriti Prastav

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Parashar Smriti Prastav by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषार्थसहिता ॥ श्र पदुगबंतुन्ियामाहिः्टमिःपूर्णतुबाह येत्‌ । नयातिनरकेष्बेव॑ बत्तंमानस्तुवै द्विज: ॥ ९० ॥ दानंदद्याशुजैतेपां प्रशस्तंस्तरगंसा धनमू । संवत्सरेणयत्पाप॑ मत्स्यघाती सम।प्लुयात््‌्‌ ॥ १९ ॥ अयोसुखेनकाछन तदेकाहेनलाहूछी । पाशकोमत्स्यघातीच व्याधःशाकुनिकस्तथा ॥९२॥ जदाताकर्षेकशचैत पशुतिसमंभागिन: । क्रण्डनीपेपणी चुल्द्दी उदकुम्भी चमाजेंनी ॥ ९३ ॥ पजुसूनाणहस्थरम अहन्यह निवत्तंते । हम हा वेश्वदेनोबलिमिंका गोग्रासो हन्तक्रारक: ॥ १४ ॥ शहस्थ/प्रत्यहूं कुर्घात्सूनादीचैनेलिप्यते । घृूक्षाच्छित्वामहीं मिर्ना हत्वाचकमिकीठकान्‌ ॥१४॥ कर्षेक:खलुयज्लेन स्पापेःप्रमुच्यते । योनदद्यादद्विजातिभ्यों राशिमूलमुपागतः ॥ १९६ ॥ छः बेलों के हल को दिन के तीन पहर और आठ बैल के दल का सब दिन जोते ऐसे चर्तता हुआ दिज नरक में नहीं जाता ॥१०॥ स्वर्ग का उत्तम साधन दान ब्राह्मणों को ही देवे । मच्छियों को मारने वाखा एक चर्ष में जिस पाप का भागी होता है ॥ ११ ॥ छोहा है मुख में जिस के ऐसे काठ ( दल ) वाला ब्राह्मण एक दिन में उस पापका भोगने चाछा होता है। १-पाशक (फांसी देके मारने चाला, ) २-मच्छियों का मारने चाला, ३-हिर्णादि का सारने वाला घथिक ४-पश्षियों को पकड़ने घाला ॥१ुर॥ तथा यांचवां जो दान स देवे और खेती करने बाला दों-ये पांचों एक हो प्रकार के समान . थाप सागी हैं | ओोखली, चक्की, '्यूल्हा, जठ के धड़ें, माज॑नी (दुद्दारी ) ॥१३॥ ये पांच हत्या गदस्थ पुरुष को नित्य २ लगती हैं। चैश्वदेव ( देवयज्ञ ) बली ( सूतय्ञ) सिक्षा देना, गोग्रास, और हंतकार नाम अतिथियज्ञ ॥१४॥ इन पांचों को जो सदस्थी प्रतिदिन वकरता है चद्द पूर्वोक्त पांच हृत्याओंके दोपसे लिप्त नहीं होता । -चृक्षॉंको फाटने एथ्वी के 'खोदने, झमि और कीड़ोंके सारनेखे जो पाप खेतीमें दोता है ॥१५॥ खेती करने घाला यज्ञ करनेसे उन सब पापोसे छूटजाता है ।, जिसके भनक्षकी राशि हुई हो गौर घह समीपनमें




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