प्राच्य-शिक्षा रहस्य | prachya - siksha rashya

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prachya - siksha rashya  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इश्वररमरणा (६ सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्क हे कृष्ण हे यादव हे सखेति । अजानता महिमानं तवाय॑ मया प्रमादाञ्णयेन बापि ॥ यच्चावहासाथेमसत्कृतोसि विद्दारशय्याशनभोजनेपु । एकोथबाप्यच्युत तत्समप्ष तसक्षामयें स्वामहमग्रमेयसू ॥ पित्तासि लोकस्य चराचरस्य त्वसस्य पूज्यश्च गुरुगरीयान । न त्वंत्समोस्त्यश्यधिकः कुत्तोन्यः लोकत्रयेप्यमतिम्रभाव ॥ तस्मात्मणम्य प्रणिधाय कार्य प्रसादये त्वामदमीशमीब्यम्‌ । पितेव पुघ्स्य सखेच सख्युः प्रिय। प्रियायादसि देव सोदुम्‌ । शर्रपूर्व हुपितोस्मि इट्टा मयेन च मव्यथितं मनो में । तदेच में दर्शय देव रूप॑ पुनः प्रसलो भव विश्व ॥ . प्रातः्काल्न ब्राह्ममह्त्त में कदापि शयन नहीं करना ऐसे ही सन्ध्याकाल में भी निद्रा का निपथ किया दे, बिस्तर से उठकर सुख प्रम्यालन कर निम्न लिखित मन्त्रीं को पढ़े:-- प्रातरंग्चिं प्रातारिन्द्र हवामहे . प्रातर्मित्रा चरुणा प्रात- रश्विना । आतमंगं पूषणं घ्रह्मणस्पत्तिं । प्रातः सोममुत रुद्र हचामहे । प्रिय मा कण देवेपु प्रिय राजसु मा कण. | प्रिय स्वेस्य पश्यत उत शूद उत्ता्य्ये ॥ ।. इन मन्त्रों को पढ़ कर शपने दोनों करतलों को देखे | गेहां तक चने प्रात:काल मांगल्य पदार्थों का दर्शन करे । । ' वदनस्तर बहि्मूमि था ज्ञालरूर में बिस्मूत्र का परि- | शग , कर समाहितचित्त , से शीत, दृन्तघधावन, करे -झर्थाद्‌




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