भिखारी दास खंड - १ | Bhikharidas Granthavali Khand-i

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Bhikharidas Granthavali Khand-i by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रद ) ( सोरठा ) रहत लासु दुरवार सात दीप के अवनिपतहि । रष्यी तादि करतार ठिन्द मधि उदित दिनेस सो || ३ ॥ ( दोद्दा ) रन सत दाया दान में रसमे राजित धौर । जगपालक घालक यलनि, महाराज रनघीर ॥ ४ ॥ ( सोरठा ) सुकथि मिपृरीदास कियी. अ्रंथ. छुंदारनी । तिन छुंदुनि को प्रकास भो मद्दराज - पसंद-दित ॥ ४ ॥। इसके श्रनंतर मात्राछुंदाँ फा प्रस्तार दे । दो मानना से ४६ साना तक 1 एक मात्रा का कोई छुंद नहीं दे | प्रत्येक छुंद पी माना, वृत्ति श्रीर छुंदसंख्या दी गई है। ३३, ३४, २५, रद, २६, ४१, ४२, ४३ शरीर ४४ माना थी छुंद्संख्या नहीं है ।. घृंदार्व में जितने छंद श्राए है” उन्हीं की संख्या छुंदसंख्या में दी गई है । झुल २३३ जोड़ दिया गया है । इसके श्रमंतर वरुप्रस्तार दिया गया दै--एफ चर्ण से ४८ वर्ण तक । ४, २८, रहे, रे५, दे७, व, ४०; है; दे; दे; ४६; ७ की छुंदसंख्या नहीं है। वरुं- प्स्तार पो छुंदसंख्या का जोद १९८ है। दोनों का जोड़ ३६१ है । सात्रा-यस्तार वर्णामर्कर्टी ( सोज, ४७-२६१ ड ) छुंदारावि पी तीसरी सरंग मान है, कोई स्वतंत्र प्रंय नहीं । काब्यनियुय खीज में काव्यनिर्रायि की १६ प्रतियाँ फा पता चला है-- इ--पूर्ण, लिपि० सं० १८७१: प्राति०-फाशिराज था पुस्तबालय ( खोज, ०-६१ )। र--पूर्ण, लिपि० सं० १६१६५ प्राप्ति०-श्रीरामशंकर, सड़्गूपुर; गोंडा ( पोज, र०७ ए | इननपूण, लिपि० सं० १६५३; यापिर-शीकन्देयालाल महापान, श्रसनी, फ्तेइपुर ( खोज, २०-१७ वी ) 1 इ--पू्णं, लिपि सं० १६०४, य्रातिव-महाराज सगवानयक्स सिदद; शमेठी, सुलतानपुर ( सरोज, रदे-श३ डी 3 ।




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