सार्त्र शब्दों का मसीहा | Sartre Shabdon Ka Masiha

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Sartre Shabdon Ka Masiha  by प्रभा खेतान - Prabha Khaitan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साप्न शब्दों का मसीहा १७ लक्जमवग की एक बेंच पर अपनी मा के साथ बैठा नन्ही भंगी आखो वाला वह बच्चा अपनी बदसूरती पर खुद से नफरत कर रहा है (वह भाप ने सवाल करता आखिर यही चेहरा रोज दपण मे क्यो देखना पडता है ? ) इस स्नेहिल जोडे मा-वेटे के आसपास कई लड़के खेल रहे हैं उनके साथ खेलोगे नही ? एन मेरी पूछती हैं । नही । ज्या पॉल उत्तर देता है। मैं उनकी माताओ से पूछू कि अपने वच्चो के साथ तुम्हे खेलने दें । नही नहीं. दश्य बडा विघ्वसक है लेकिन इस बच्चे का अपना एक जगत है । रू द गाफ बी छठी मजिल पर जहा वह शासक और सजक दोनो हैं जहा वह कितावे पढ़ता है और रोमास लिखता है । शब्दा के सहारे कितावां की दुनिया मे रहने वाले कया यही साल थे. जो आगे चलकर एक सक्रिय बौद्धिग बते और प्रत्येक जन-आ दोलन मे शामिल हुए ? उनके अतिरिकत रूप से लेखक होने की इस नियति के बारे म स्वयं सिमौन द बोउआर भी लिखती हैं कि जब १९२६ मे वे पहली बार सात्र से मिलती है तब उहे सबसे बडा आश्चय इस युवक की एकाग् चिन्तन शक्ति पर होता है। मानो एक शात किन्तु उमत्त पागलपन मे वे अपनी पुस्तक लिखने भी तैयारी कर रहे थे। अपने मेमोरीज़ आफ ए ब्यूटिफुल डौटर --डायरी (प्रथम खड) मे मिमौन द बोउआर लिखती है. मैं खुद भी तो एक लेखक वनना चाह रही थी कि तु सात्र तो मानो लिखने के लिए ही पैदा हुए थे। वे क्या लिखेंगे इसका महत्त्व नहीं था और न ही उनके जेहन में इसकी कोई अनुभव पूब भूमिका ही थी। वे तो बस सभी चीजों मे रुचि रखते थे । प्रत्येक वात की परीक्षा किया गरते थे। किसी प्रूवानुमानित सत्य के लिए उनकी स्वीकति नही थी। उद्दीने अपनी जो नोट बुक लिखी थी और हमसे जो बातें की उनमे एक ऐसी स्पष्ट वैघा- रिक व्यवस्था की झलव थी जिससे हम सब दोस्त स्तभित थे और इसवे साथ ही इस दाशनिक परियोजना के समानार्यी उनकी प्रतिबद्धता कान एवं कला के प्रति भी थी । हालाकि उ ढ़ोने खुलकर कभी नहीं कहा थ




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