नागार्जुन के काव्य में शिल्प विधान | Nagarjun Ke Kavya Mein Shilp Vidhan
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
230.77 MB
कुल पष्ठ :
369
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिस्थितियों से अवगत होना आवश्यक है।
१....... राजनीतिक परिस्थितियाँ
लेनिन के नेतृत्व में २४ अक्टूबर १६१७ को रूस की रक्तरंजित क्रांन्ति
की सफलता के कारण विश्व-रंगमंच का दृश्य ही बदल गया। संसार के नौजवानों
एक नयी प्रेरणा मिली। ब्रिटिश सरकार भी रूसी क्रान्ति की सफलता के प्रभाव से
हा
अछूती न रही।
भारत के राष्ट्रवादियों तथा जनता को शान्त करने के लिये माण्टेक्यू
चेम्सफोर्ड ने १६१६ में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट द्वारा राजनीतिक सुधारों का एक कानून
पारित किरवाया। इस कानून द्वारा द्वितंत्र शासन प्रणाली प्रारम्भ हुई। गृह सरकार और
केन्द्रीय शासन के कुछ विभाग प्रान्तीय सरकारों को सौंप दिए गए, परन्तु राजस्व,
कानून और व्यवस्था तथा न्याय आदि विभागों पर ब्रिटिश सरकार का कब्जा बरकरार
रहा। राजस्व के लिये भारतीय मंत्रियों को ब्रिटिश सरकार पर ही आश्रित रहना पड़ा।
केन्द्रीय सरकार का वर्चस्व बना रहा। प्रान्तीय स्वशासन की प्रतिष्ठा नहीं हो पायी।
इस कानून के कारण भारतीय जनता की आकांक्षाओं पर पानी फिर गया। आहत
होकर भारतीय कांग्रेस के नेताओं ने अपने आन्दोलन को व्यापक रूप दे दिया।
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में १६१६ का वर्ष विशेष
महत्वपूर्ण है। इसी वर्ष भारतीय राजनीति में प्रवेश कर महात्मा गांधी ने स्वतंत्र संग्राम
को एक नयी दिशा दी। अंग्रेजी सत्ता के साथ सशस्त्र संघर्ष का मार्ग न अपनाकर
उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह का सहारा लिया।
सष्द्रीय, आन्दोलच को उमर रुप को देखकर लिटिश सरकार
दमनचक्र विकराल रूप धारण करने लगा। आन्दोलनों को कुचलने के लिये
सरकार ने १६१६ में 'रौलट एक्ट” पारित किया। इसके अनुसार
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