धन्वन्तरि सीरीज का एक उत्कृष्ट प्रकाशन | Dhanvantri Sirij Ka Ek Utkrist Prakashan
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
349
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. अम्बालाल जोशी - Pt. Ambalal Joshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हु
पुराण ग्रंथ भारतीय संस्कृति के अभिय अंग 5 1 इनमें
उनेक ज्ञान की बातें जिनमें भक्ति, ज्ञान, वेराज तथा इति-
हास सम्बन्धी उल्लेख मिलते है । बहा बेचते पुराण इसी /
अठारह पुराणों की श्र खला में एक है। इस पुराण में दो
अध्याय आयुर्वेद से सम्बन्धित हैं उनमें प्रथम अध्याय है
सोलहवां तथा दूसरा अध्याय है इक्याननवां । दोनों ही
अध्योय अपने अपने विषय को लेकर लिखे गये हे. ।
ब्राह्मण रूपधारी भगवान विष्ण को मालाविती ने
पूछा -ब्रह्मनु ! आपने जो कहा है कि रोग प्राणियों के
प्राणों का अपहरण करता है। रोग के नाना प्रकर के
कारण, उन सबका वेद (आयुर्वेद) में निशुपग-जिसका
निवारण कठिन हैं वे असंगलकारी रोग शरीर में न फंँलें
ऐसा आप उपाय बताइये ? तथा अन्य उपयोगी लोक हित-
कारी वात बताइये ।
इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए न्नाह्मण ने कहा. ऋक,
साम, यजु. तथा अथर्व वें का. अध्ययन कर प्रजापति ने
आयुर्देब (उपवे ) का संकलन किया ।”. इस प्रकार
पंचम वेद का निर्माण कर प्रजापति ने उस सूर्य को
पड़ापा । इस प्रकार आयुर्वेद के आतार्थों की परम्परा
बताई गई है। उन सभी आचार्यो ने अपनी सहिताये बनाई ।
उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है --
माघार्य रचना
(*) प्रजापति पंचम वेद
(२) सूर्य - आएुर्ें इ-संहिता (अपने शिप्यों
को पढ़ाई)
(३) धन्वन्तरि“ चिकित्सा तत्व विज्ञान
सम्न्यों जय दल
च्व्वूस्टि| हू
डाग्ताराप्रकाशजीशी एम.ए,पीएच-डी.,डी-लिट-
शस्
नत सराण मं
2
(४) कारशिराज दिजोदास चिकित्सादपण
काशिराज दिव्य चिकित्सा कौमुदी
(५) अश्विती कुमार -- चिकित्सा सारतं न
(५) नकुल - वैद्यक सर्वेस्व
(७) सहरेव न व्याधि सिन्घु निमदंत
(८) सु पुत्रयम -- .. ज्ञानार्णय
(६) न्यवन न जीयदान
( ०) जनक ना बैद्य संदेह भव्जन
(११) बुध से सार
(१२) जावाल न तंत्रसार
(१३) जाजलि - वेंदांग सार
(४) फैल न निदान तंत्र
(१५) करथ - सवंधर तंत्र
(*६) अगस्त्य- दूध निणेय
संख्या * से ** तक सभी सुर्ग के शिप्य थे 1
आउपुर्गंद के अनुसार रोगों का परिज्ञान कर वेरना
को रोकता इतना हूं वँद्य का वैदत्व है। बेच आयु का
र्1रो नहीं है 1* अर को आयुर्वेद का ज्ञाता, र्कित्सा
फ़िंयाओं का यथाय॑ परिज़ाता, धर्मनिष्ठ तथा दयालु होना
चाहिये । उनर की उतात्ति के बारे में कहा है -
दाचण ज्वर समपप्त रोगों का जनक है । उसे रोकना
कहठिग होता है । बहु शिव भक्त +र योपों है । ससझा
स्वभाव निष्पुर है । आकृति विक्रराल है । उसके तीन पैर,
तीन लिर, ६ हाथ गौर नो सेत्र हैं । वह भयकर ज्पर
काल अन्तक और यम के समान बिनापक्ारी है । मस्प
हो उसका अस्त है तथा सदर पटक उम्म्प्य देता
2 उपबेद अआपुर्गेद, ज्योतिपरण, आयुर्वेद-: पंच मो जद:
४ घ्याचेश्तत्व॒ परिज्ञान वेदतायाइन निद्रहु: ।
एतईूं धस्य बंद्त्व॑ न. वेद,
नल
प्रसुरायुष: 1 भा, प्र. ८ खण्ड, प्रथम प्रंफरण भू इलंक ५६ 11
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