धन्वन्तरि सीरीज का एक उत्कृष्ट प्रकाशन | Dhanvantri Sirij Ka Ek Utkrist Prakashan

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Dhanvantri Sirij Ka Ek Utkrist Prakashan by पं. अम्बालाल जोशी - Pt. Ambalal Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हु पुराण ग्रंथ भारतीय संस्कृति के अभिय अंग 5 1 इनमें उनेक ज्ञान की बातें जिनमें भक्ति, ज्ञान, वेराज तथा इति- हास सम्बन्धी उल्लेख मिलते है । बहा बेचते पुराण इसी / अठारह पुराणों की श्र खला में एक है। इस पुराण में दो अध्याय आयुर्वेद से सम्बन्धित हैं उनमें प्रथम अध्याय है सोलहवां तथा दूसरा अध्याय है इक्याननवां । दोनों ही अध्योय अपने अपने विषय को लेकर लिखे गये हे. । ब्राह्मण रूपधारी भगवान विष्ण को मालाविती ने पूछा -ब्रह्मनु ! आपने जो कहा है कि रोग प्राणियों के प्राणों का अपहरण करता है। रोग के नाना प्रकर के कारण, उन सबका वेद (आयुर्वेद) में निशुपग-जिसका निवारण कठिन हैं वे असंगलकारी रोग शरीर में न फंँलें ऐसा आप उपाय बताइये ? तथा अन्य उपयोगी लोक हित- कारी वात बताइये । इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए न्नाह्मण ने कहा. ऋक, साम, यजु. तथा अथर्व वें का. अध्ययन कर प्रजापति ने आयुर्देब (उपवे ) का संकलन किया ।”. इस प्रकार पंचम वेद का निर्माण कर प्रजापति ने उस सूर्य को पड़ापा । इस प्रकार आयुर्वेद के आतार्थों की परम्परा बताई गई है। उन सभी आचार्यो ने अपनी सहिताये बनाई । उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -- माघार्य रचना (*) प्रजापति पंचम वेद (२) सूर्य - आएुर्ें इ-संहिता (अपने शिप्यों को पढ़ाई) (३) धन्वन्तरि“ चिकित्सा तत्व विज्ञान सम्न्यों जय दल च्व्वूस्टि| हू डाग्ताराप्रकाशजीशी एम.ए,पीएच-डी.,डी-लिट- शस् नत सराण मं 2 (४) कारशिराज दिजोदास चिकित्सादपण काशिराज दिव्य चिकित्सा कौमुदी (५) अश्विती कुमार -- चिकित्सा सारतं न (५) नकुल - वैद्यक सर्वेस्व (७) सहरेव न व्याधि सिन्घु निमदंत (८) सु पुत्रयम -- .. ज्ञानार्णय (६) न्यवन न जीयदान ( ०) जनक ना बैद्य संदेह भव्जन (११) बुध से सार (१२) जावाल न तंत्रसार (१३) जाजलि - वेंदांग सार (४) फैल न निदान तंत्र (१५) करथ - सवंधर तंत्र (*६) अगस्त्य- दूध निणेय संख्या * से ** तक सभी सुर्ग के शिप्य थे 1 आउपुर्गंद के अनुसार रोगों का परिज्ञान कर वेरना को रोकता इतना हूं वँद्य का वैदत्व है। बेच आयु का र्1रो नहीं है 1* अर को आयुर्वेद का ज्ञाता, र्कित्सा फ़िंयाओं का यथाय॑ परिज़ाता, धर्मनिष्ठ तथा दयालु होना चाहिये । उनर की उतात्ति के बारे में कहा है - दाचण ज्वर समपप्त रोगों का जनक है । उसे रोकना कहठिग होता है । बहु शिव भक्त +र योपों है । ससझा स्वभाव निष्पुर है । आकृति विक्रराल है । उसके तीन पैर, तीन लिर, ६ हाथ गौर नो सेत्र हैं । वह भयकर ज्पर काल अन्तक और यम के समान बिनापक्ारी है । मस्प हो उसका अस्त है तथा सदर पटक उम्म्प्य देता 2 उपबेद अआपुर्गेद, ज्योतिपरण, आयुर्वेद-: पंच मो जद: ४ घ्याचेश्तत्व॒ परिज्ञान वेदतायाइन निद्रहु: । एतईूं धस्य बंद्त्व॑ न. वेद, नल प्रसुरायुष: 1 भा, प्र. ८ खण्ड, प्रथम प्रंफरण भू इलंक ५६ 11




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