ब्राह्मणों की उत्पति | Brahmanon Ki Utpati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च घ्रांधणी दी उत्पत्ति | श्् अपना प्रयाश्चित अन्य मतियोंसेद्दी कराया करेंगे भर तब जैनन्राह्मण बनना व्यर्थड्ी र. देगा इस कारणु जन्म सियों के समान इमिकों भी प्राय श्वित्तका अधिकार घिलना चाहिये । रन्य ६ अधिकारोंके पढ़नेसे भी यही. चात निकलती है । (देखों पर्य४०१७ोक १७८ से २१४ तक । ) पहली अधिकार जतिशालविदा गर्थात्‌ वालपनेसे ही उपालनकालार शाखों का पढ़नां है। इसके घिषय में लिखा है कि यदि वे चालपनेसे ही इनको नहीं पढ़ेंगे ती अपनेकों कंठ मूठ ब्राह्मण मानने चाले मिथ्या ट्रष्टियोंसे ठगे जायेंगे भौर मिध्या शाखोंकि पढ़नेमें लग-ज्ञायेंगे । इससे सिद्ध है कि उस समय साधारण तौरपर मिथ्यात्व्री श्राह्मणोंसे ही द्वारा पढ़ाई होती थी भौर जेनब्राह्मण बनानेवालेफो इस धात का भय था कि, यदि हमारे चनाये हुये ज्राह्मणोंके चालक बचपन से दो जेन शास्त्रों के 'पढ़नेमें न ठगाये.ज्ञायंगे तो प्रचर्छित रोतिके अजुसरर वे अन्य मतियोंकी ही पाठशाला, मैं जावेंगे और उनके शाख्र पढ़कर अन्यमती ही दो जायेंगे । दूसरा भधिकार कुलाव घिक्रिया अर्थात्‌ भपने कुठके आचरणींकी रक्षारखना है। इसके चिपयमें भी भय दिखलाया हैं कि,पसा न करन से चह्द दूसरे कुछका हो जावेगा। अर्थात्‌ भदि चह गन्य,मतियों के चहकानेमें आकर उनकी सी क्रिया करने लगेगा तो उनके ही कुलफा दो जायेगा । तीसरा मधिकार चर्णो्तम फ़िया है, अर्थात्‌ अपने के सब चर्णासे उत्तम मानना । क्योंकि ऐस्स न माननेसे न तो वह गपनेका झुद्ध कर स कता है और न दूसरों के; इसकी चावत भी भय प्रकट किया. है कि यदि बह अपनेकेए सबसे धड़ा न मानेगा तो चद्द अपनेका) शुद्ध करतेकी (८छासे 'मिध्याहूटटी-कुलिडियों फी सेचा फरने लंगेगा,और फुब्रह्मकों मनिकर उनके सब दोष प्राप्त करलेगा । इससे भी सिद्ध है कि जैन घ्राह्मणों के 'बनाये जनेफे- संमय ' जन्यमतियों का बड़ा भारी प्राथलथ भर लॉगोंमें उनकी बड़ी शारी श्रद्धा थी, जौर उस समय मिध्यात्वी ब्राह्मण ही यड़े माने जाते थे-जैन ब्राह्मण बहुत घटिया ,भौर अदुद्ध समभे जाते थे । इसी. कारण जेन ब्राह्मण घसानेवाला भपने ब्राह्मणों को 'य्द उपदेश देता था कि तुम भी अपनेका यड़ा मानों भर सब जैँनी शी इनको पड़ा मानें; ' जिससे ये छोग अपनेको घटिया या भटुद्ध समभफर मपगी गुद्धि करानेके घास्ते मन्य -मतियोंके पास न जायें 1 . घौथा जधिकार पाब्रस्व है, भर्थात्‌ ये जन घ्राह्मण दान देनेकें पात्र हैं, इनको दास जघश्य देना चाहिये । इस विपयमें भी जेन-ब्राह्मणों का डराया है कि इनके मुणीपात्र बनना चाहिये । यदि वे गुण प्राप्त नहीं फरेगे तो उनको कोई नहीं मानेगा भौर मान्य न होनेिसे राजा भी उनका घन हरलेगा । इससे भी यही सिद्ध होता है कि,जैनप्राझण घचानेवालेष्दी इस चातसा मिख्य था लि मिध्यात्वी घ्राह्मण तो जातिके घ्राह्मण हैं,उनमें गुण हों वा न.हों थे तो गवरंय पूजे दी जायेंगे इस चिपयमें देखो प्रथम लेख, जिससे भी ये मिथ्यात्वी न्नाह्मण फेचल भपनी जातिके घमण्डसे सपनेकों पुजधाते हैं ) परन्तु




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