स्त्री - शिक्षा अर्थात चुतर - ग्रहणी | Stree-shiksha Arthat Chutr-grahani

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Stree-shiksha Arthat Chutr-grahani by राजेश गुप्त - Rajesh Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सार थाने वाला है; इसे तू. बढ़ी सावधानी श्र चतुरता से बदन करना । न केवल घर वालों को दी, बदिरू पास पह्टोस के लोगों को भी तू छापने विनीत श्र सदुव्यवद्दारों से खुश रखना । देखना, अपने माँ याप का नाम दाजाना नहीं बेदी ! ऐसा काम करना कि सब तेरी प्रशंसा करें--किसी को भा तेरी निन्‍्दा करने का, साइस न दो । रात- दिन घपने सासं-श्व खुर तथा पति की सेवा करने में दी मन लगाना, इ्ीमें तेरा कराए होगा 1 इसी प्रकार की बहुत सी बातें, जो कुन्त बधू की माँ ने विदाई से पढने उसे सममाई' थीं. एक-एक कर उसके मण्तिष्क में 'था-भाकर चक्रुर काटने लगो--एकान्त स्थात में बेठे हुए हसे और काम तो था नहों--घ्रपना माँ के दिये हुए उपदेशों को याद कर-कर के दह उन्दीं के घनुसार श्रपने को बनाने की करपना करने कगी । कछुजबधु बेचारी भी धपने इन्हीं खयाकों में डूबी हुई थी कि इतने में किसी मे एकार्ट्क पीछे से (देकर उसको दोनों श्राँखे' बन्दू कर कीं । उसने हाथ छुड़ाने की बहुत चेप्टा को; पर वह सफब्न न दो सकी - उ्यों-उर्यों वह हाथ छुव़ाने की चेष्टा करदी, यों त्यों पकड़ छर भी ढ़ ोती जाती । नववधु सदसा कु कब्मा ठठी, उसने टटोन्ष कर देखा--पकबनेवाओे का हाथ दो श्रत्यन्त कोमल शर छोटे-छोटे थे, किन्तु पकड़ बहुत मज- बूव थी 1 ही नववधू ने वार कर गिपगिड़ाते हुए कदा--'छोड़ दो सुखे--मेरी आाँखे' दुखी जा रददी दें .।* उत्तर मिंदा--'पदले बताधो सुके, कि मैं कौन हूँ १” नववधु बेचारी क्या .बताए कि नह किसके .सुद्ढ़ दा्थों में श्प्ः




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