ए. जे. अय्यर के ज्ञान के सिद्धांत का अध्ययन | A Critical Study Of A J Ayers Theory Of Knowledge

A Critical Study Of A J Ayers Theory Of Knowledge by रजनीश कुमार पाण्डेय - Rajnish Kumar Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिद्ध कर रहे थे । किन्तु जव उनका वे.द्ीय स्तम्भ ही कमजोर पड़ने लगा तो उनके विचार की उग्रता और तेजी शिधिल होने लगी | कुछ ऐसी ही भावात्मक योजना के साथ भी हुआ । उन्होंने वज्ञानिक उक्तियों की. अस्पप्टता एवं. अनेकार्थता को ट्रर करने के प्रयास में एक तार्किक विश्लेषण की विधि को रूप दिया । किन्तु यह विधि भी कुछ पूर्वमान्यताओं से ग्रसित रही तथा इसकी कुछ मंगि इतनी कड़ी वन गर्यीं थी यह विधि प्र्णतया आकारिक (0ाए9) विधि वनती गयी । फलत उसके विरूद्ध भी प्रतिकिया हुई । इस विधि को प्रतिपादित करने वालों को ही ऐसा प्रतीत होने लगा कि यह विधि भाषा विश्लेषण का दावा तो करती हे किन्तु भाषीय अभिव्यक्तियों के सभी ढंगें का विश्लेपण नहीं कर सकती। इस विश्लेषण की मांगे कुछ इतनी कड़ी हैं कि इस प्रकार का विश्लेषण पूर्णतया नियमनिष्ठ ओपचारिक विश्लेषण [न0ा18| /शा8४55) हो जाता है। किन्तु इन लोगें को प्रतीत होने लगा कि भाषीय आभिव्यक्तियां इतने विविध प्रकार की हैं कि उनका विश्लेषण अनापचारिक होना चाहिए । फलतः अनापचारिक विश्लेषण के नये प्रभावशाली ढंग स्पष्ट होने लगे तथा तार्किक भाववादी योजना शिथिल पड़ने लगी | किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि तार्किक भाववाद का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। नहीं इसके विपरीत इस वचारिक आंदोलन का प्रभाव -यष्ट है चक दार्शनिक चघिंतन की प्रगति में जव जब ठहराव आने लगता है अथवा जव-जव यह आवश्यकता से अधिक अमूर्त अवास्तविक और काल्पनिक होने लगता है तव-तव उसकी सार्थधकता और प्रासंगिकता का प्रश्न उठ खड़ा होता हे । उस समय कोई मालिक ढंग से नवीन विचारधारा दार्शनिक चिंतन के प्रचलित ढंग को झटका दे ही देती ह तथा उसे सजग कर नये ढंग से सार्थक तथा प्रासंगिक वनाने का प्रयास करती है । उस समय का यह प्रयास भले ही. वहुत दिन जीवित न रहे किन्तु उसकी सार्थकता




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