छाया | Chhaya

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Chhaya by जयशंकरप्रसाद - Jaysankar Prsaad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छाया डर युवक--तो हमारे लिए कौन दूसरा स्थान हैं ? युबती--में तो प्रस्तुत हूं । युवक---हम तुम्हारे पहले । यबती ने कहा--तो चलो । युवक ने सेघ-गर्जन-स्वर से कहा--चलो । दोनों हाथ सें हाथ मिलाकर पहाड़ी से उतरने लगे। दोनों उतरकर चल्द्रप्रभा के तट पर आये और एक शिला पर खड़े हो गये । तब यूबनी ने कहा--अब बिदा युवक ने कहा -किससे ? से तो तुम्हार साथ--जब तक सुषछ्टि रहेगी तब तक--रहूंगा । इतने ही में शाल-वृक्ष के नीचे एक छाया दिखाई पड़ी और वह इन्हीं दोचों की ओर आती हुई दिखाई देने लगी । दोनों ने चकित होकर देखा कि एक कोल खड़ा है । उसने गम्भीर स्वर से युवती से पूछा--चन्दा त्‌ यहां क्यों आई ? युवती--तुम पूछनेवाले कौन हो आगस्तुक युवक--मं तु हारा भावी पति रामू हूं । युबती--में तुमभे ब्याह न करूंगी । आ० यु०--फिर किससे तुम्हारा ब्याह होगा ? युवती ने पहले के आये हुए युवक की ओर इंगित करके कहा---इन्हीं से । आगन्तुक युवक से अब न. सहा गया । घमकर पूछा--क्यों हीरा तुम ब्याह करोगे ? हीरा--तो इसमें तुम्हारा क्या तात्पथं है ? रामू--तुम्हें इससे अलग हो जाना चाहिये । हीरा--क्यों तुस कौन होते हो ? रासू--हमारा इससे सम्बस्ध पक्का हो चुका है । फेरा--पर जिससे सस्वबन्ध होनेवाला है वह सहमत हो




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