लोक परलोक हितकारी | Lok Parlok Hitkari
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.6 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लोक पर लाकहिंतकारी
भाग ९-लोक
._. ९ विद्या, शिक्षा, झाचरन
/ क3989883कलक माँ बाप के हाथ मेँ माछिक की सैँपी हुई
अमानत है । वाठउक का हृदय मोम : सा
प्र
चर
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प्र जो पट नर्म और कमाई हुई धरती के समान उप-
#5५३५६१९१$# जाऊ होता है कि उस मैँ जैसा ठप्पा
छठगाओं और जैसा बीज बोओ वैसी पद उगती और आगे
ख़ कर फूठती फठती है यद्यपि पूर्व जन्म का संस्कार
बिल्कुठ न मिटे । इसखिये छिखाने पढ़ाने के साथ /ही जब ः
अवसर मिले माँ चाप का चाहिये कि अच्छाँ और चुरा की
“मिसाल दिखालाकर ऊड़केँ के हृदय मेँ सत्य, शील, क्षमा,
संतोष, दीनता, भगवत-भक्ति आदि के सुन यबसावे और
झूठ, कोध, बैर, विरोध, लालच अहंकार आदि के अवगुनँ
से अरुचि पैदा करावेँ । जा माता पति अपने इस चर्म में
स्वूकते हैँ चदद भारी जवाबदिददी अपने ऊपर लेते हैँ ॥
२--हर आदमी की प्रकृति मेँ दया, करना, लज़ा और
कुकर्म से भरचि के अंकुर घरे हैँ चादे चदद उन्हें खींच कर
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