लोक परलोक हितकारी | Lok Parlok Hitkari

Lok Parlok Hitkari by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लोक पर लाकहिंतकारी भाग ९-लोक ._. ९ विद्या, शिक्षा, झाचरन / क3989883कलक माँ बाप के हाथ मेँ माछिक की सैँपी हुई अमानत है । वाठउक का हृदय मोम : सा प्र चर न्ध्य्र डे $$88$ प्र जो पट नर्म और कमाई हुई धरती के समान उप- #5५३५६१९१$# जाऊ होता है कि उस मैँ जैसा ठप्पा छठगाओं और जैसा बीज बोओ वैसी पद उगती और आगे ख़ कर फूठती फठती है यद्यपि पूर्व जन्म का संस्कार बिल्कुठ न मिटे । इसखिये छिखाने पढ़ाने के साथ /ही जब ः अवसर मिले माँ चाप का चाहिये कि अच्छाँ और चुरा की “मिसाल दिखालाकर ऊड़केँ के हृदय मेँ सत्य, शील, क्षमा, संतोष, दीनता, भगवत-भक्ति आदि के सुन यबसावे और झूठ, कोध, बैर, विरोध, लालच अहंकार आदि के अवगुनँ से अरुचि पैदा करावेँ । जा माता पति अपने इस चर्म में स्वूकते हैँ चदद भारी जवाबदिददी अपने ऊपर लेते हैँ ॥ २--हर आदमी की प्रकृति मेँ दया, करना, लज़ा और कुकर्म से भरचि के अंकुर घरे हैँ चादे चदद उन्हें खींच कर




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