विद्यापति की पदावली | Vidhyapati Ki Padawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.27 MB
कुल पष्ठ :
374
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिचय
< ७. 'द.>चटि
मे घोरसिद् सिहासन पर विराजमान बतलाये गये है । ३२२१ लक्ष्सणाब्द
१४२८ इ० में पड़ता है क । सोचने की बात है कि जब पुत्र १४२८ ईं० में
राजगद्दी पर बैठा था; तब उसका पिता १४७० सें कैसे राजा हुआ ? बस,
साफ प्रकट है कि खतन्नीजी ने यहाँ भी ४६ चप॑ को गलतो का है ।
१४७० मे ४६ घटा देने पर १४२४ ई० सें नरसिहदेव का राजा होना
सिद्ध होता है । नरसिहटेव ने; सहायजी के ही कथनालुसार; एक ही
चप॑ तक राज किया था । सम्भव है, १४२७ में वे मर गये हो श्र १४२८
मे उनके पुत्र घीरसिह राजगद्दी पर विराजमान रहे हों । 'सेठुटपणी' से
भी यहीं पता चलता है ।
इसों ४६ वर्ष के फेर से पड़कर जहाँ सहायजी ने केदल २० वर्ष की
घ्यवस्था में शिवसखिंह श्र विद्यापति की भेंट कराकर तीन ही वर्षो में
उनका चिरवियोग कराया; वहाँ विद्यापत्ति की झाताधिक वपे की शवस्था
का भो अ्रम उन्हे हो गया था--जिसका श्रौचित्य प्रमाखित करने के लिये
श्रापने जसीन-ऑाससान का कुलावा मिलाया है, निजी श्रौर सावजनिक
सब प्रसाणो को पेश किया है ।
सद्दायजी को एक श्रौर तिथि ने भी घोखा दिया है। श्ापने पृष्ठ २३
में लिखा है कि ३४५ लक्ष्मणाव्द में इनके श्पने हाथ से भागवत-पोथी
की नकल करना सिंद् होता है. । यह रालत है । सगेन्द्रनाथ गुप्त ने से थिल
कचिवर “चंदा का” के साथ स्वयं 'तरोनी” जाकर उस पुस्तक को देखा
था । उस पुस्तक के अंत मे लिखा है-“शुभमस्वु सर्वाथगता ल० सं० ३०९
श्रावण शुदि १५ कुजे राजाबनौली ग्रामे श्रोविद्यापतिर्लिपिरियमिति ।??
इस ३०५ को ही सहायजी ने श्रमवग ३४९ सान लिया है !
अब यथार्थ बात सुनिये । चद्द इतिहास श्रौर जनश्रुति दोनों पर
श्रचलस्वित है; श्बौर ्ापकों युक्तियुक्त भी मालूम पढ़ेगो ।
एदियाटिक सोसाइटी मे एक प्राचीन हस्तलिखित पोधी है; जो
१३२२ दाकाब्द ( २९० लक्ष्मणाब्द ) की लिखी हुई है। वह पोधी
# सद्दायन्नी की गणना के तनुसार ।--लेखक
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