कहावत कल्पद्रुम | Kahavat Kalpdrum

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Kahavat Kalpdrum  by रतलाम - Ratlam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथमकुसुम । ९ वि साम्हना होताहि तो अवश्य चित्त नम्र होकर आअपससन भाव चला जाताहें तद ऐसा कहतेंहें ॥ ३२२ जखिंहुई जद ती जींपेंभाया डोट ॥(१) जब प्रत्यक्षमें कोइ आदमी मशंसा करता परंतु परोश्न में निन्‍्दा या बुरा करताहे तव कहतेंहें (९) जब आंखों के मुलाहिनेसे काम अच्छा नहींहोता तभी ऐसा कहतेंहें॥ ३३ आंखका अन्धा गांठका पूरा ॥ जब कोई आदमी देखनेमें तो बेवकूफ सा पर अपने मतलबकों होशयार होता वद ऐसा कहतेंहें ॥ ३४ आंखों देखी रानिये कानों सुनी न सान)॥ जद॒ किसी विश्वसनीय पुरुपके मुहकी हुनी दातमें अन्तर पढजाताहे तब ऐसा कहतेहैं ॥ ३५ आग छठे तबझूँजा खोदना ॥ किसीवात का प्थमह्दीसे तो कुछ प्रवन्ध न करना पर जब सिरपर वीते तो फिर प्रबंध करनेको जो दोडताहे उसकेछियें ऐसा कहा जाताहे ॥ नल पक 5 झखरूज च् छज इसजघरू .इ झट गए णणणण+ा द का ही आज. अतभवतक 2... दे. आर आन. आय आ. आ . . ._. कक. .




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