निकोलाई गोगोल | Nikolai Gogol

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Nikolai Gogol by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उठवर खडे होते हुए आसे मलकर कहा। उसने चारों ओर देखा शत वी छटा और भी निद्र आयी थी। चदमा के प्राश में एक विचित्र. मत्रमुग्ध कर देनेदाली चमक पैदा हो गयी थी। उसने ऐसा नयनाभिराम दृश्य पहले कभी नही देखा था। आस-पास हर जगह रपहला बुहरा छा भरा थां। हवा मे सेव के बौर और रात के फूलों वी सुगंध बसी हुई थी। आश्चर्दचतित होकर उसने तालाव के दाद जन को देखा। पुरानी हवेली का उन्टां प्रतिविव पानी में दिखायी दे रहा था . उसमे मयी चमक-दमक और भव्यता पैदा हो गयी थी। उसके अध्ेरे दरवाड़ों वी जगह चमचमाते हुए काचवाली बिड़दिया और देरवाशे लग गये थे। उनके निर्पन सीशी में सोने वी जमक थी। फिर उसे लगा कि लिइ़वी खुल रही थी। वह दम माधे हुए था , ततिक भी हिलने-दुसने वी उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी और वह अपनी नज़रे तालाब पर जमाये था। उसे ऐसा लगा कि तालाव उसे अपनी गहराई की ओर थोचे लिये जा रहा है। वह एकटक देखता रहा. पहले खिड॒वी में एक शोरी-गोरी बुहनी दिखायी दी , फ़िर गहरे सुनहरे रग के बालों की लहरों के थीच कमकहा हुआ चमवदार आदश्योवाला एक नौजवात चेहरा आकर बुहनी पर टिक गया । वह टकटवी बाधे देख रहा था. उस सुदरी ने अपने सिर बी. हल्वएसए भटबा टिया , हास्य छिलएयः और हर दी. उसना दिल धक सै रह गया. पानी में हिलोरे उठी और ब्िडकी फिर बेद हो गयी। वहे घीरे-धीरे बदम बढ़ाता हुआ तालाव के पाम से चला आया और नजरें उठाकर उसने हवेली की ओर देखा अधेरे दरवाजे खुले हुए थे और श़िइरियों के भीगे चादनी में चमक रहे थे। इससे यट्टी पता चलता है कि लोग कैसी बकवास करते हैं , ” उसने सोचा। ” घर बिल्कुल नया है, रग-रोगन ऐसा ताज़ा है जैंमे आज ही लगाया गया हो। और उस दोई रहता भी है।” वह चुपचाप घर के और पास चला गया, लेक्नि घर रे कोई आवाड सुनायी नहीं दी। उसके चारों और बुनदुलों वे मधुर गीतों की तेज गूज पूरे वैभव से सुनायी दे रही थी, और लाखिर्दार जब इन गीतों ने मद पड़ते-पइते विस्कुल दम तोड़ दिया, न उनकी भरपूर मिठास ने उनवा गला घोद दिया हो, तो डी जगह मीगुरो की री-री और तालाव के भिलमिलाते हुए पानी में अपनी चिकनी चोच डियोते हुए दलदली पक्षियों के बर्कध स्वर ने ले डर




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