प्राचीन भारत में रसायन का विकास | Prachin Bharat Me Rasaayan Ka Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बेदिक काल प्‌ तपाकर धातु तैयार करने की ओर एक सकेत अथवंवेद में भी है । इसके एक मंत्र में हरित रजत और अयस्‌ तीन शब्द प्रयुक्त हुए हूं जो क्रमश सोना (हिरप्य ) चॉदी और लोहे के पर्याय प्रतीत होते है । सफेद सुन्दर रूप के कारण चॉदी को अर्जुन भी कहा गया है । हरित अर्जुन और अयस्‌ (सोना चॉँदी और लोहा) ये तीन प्रसिद्ध है। अथंवेद मे एक स्थल पर दयाम (तॉबे) लोहित (लोहे) और हरित (सोने ) के साथ त्रपु (रॉगा) शब्द का भी प्रयोग हुआ है-- इसका मास ताख्रवर्ण (इयाम ) का है रुधिर लोहव्ण का इसकी भस्म त्रपु वर्ण की है और इसका रग हरित या सोने का-सा है। सीसा धातु का उल्लेख ऋग्वेद में तो नही है पर अथर्ववेद में एक पूरा सूक्त दघत्य सीसमू है । वरुण अग्नि और इन्द्र इन तीनो की कृपा या आशीर्वाद से सीसा धातु प्राप्त हुई । यह शत्रुओ को दूर भगानेवाली है--हम तुम्हे सीस से बेधते है जिससे तुम हमारे प्रियजनों को न मार सको । (सीस के बने छर युद्ध मे काम आते थे ऐसा प्रतीत होता है ।) जो हमारे गौ अदव या पुरुषों को मारे उसे तुम सीसे से बेघो । १. नव प्राणान्‌ नवभिः संमिमीते दीर्घायुत्वाय दातशारदाय । हरिते त्रीणि रजते श्रीण्ययसि चौणि तपसाबिष्ठितानि ॥ (अथवं० प२८१) २. भूमिष्ट्वा पातु हरितेन विदवभूदर्नि पिपत्वेंयसा सजोषाः । वीरुदूभिष्टे अर्जुन संविदानं दक्ष दघातु सुमनस्यमानम्‌ ॥ (अथवें० ५1२८५) दिवस्त्वा पातु हरित मध्यात्‌ त्वा पात्वजुनम्‌ । भूम्या अयस्मयं पातु प्रागादू देवपुरा अयमु ॥ (अथर्व० ५२८९) ३. इयामसपोध्स्य सांसानि लोहितमस्थ लोहितम्‌ । त्रपु भस्म हरित वर्ण पुष्करमस्य गन्धः ॥। (अथबें० १११३७-८) ४. सीसायाध्याह वरुण सीसायार्निसपावति । सीस॑ सम इद प्रायच्छत्‌ तदड्ध यालुचातनम्‌ ॥ इदं विष्कन्घ॑ सहत इदं॑ बाघते अतृत्रिण । अनेन विदवा ससहे या जातानि पिंदाच्या ॥ यदि नो गां हूंसि यद्यदवं यदि पुरुषम्‌ । त॑ त्वा सीसेन विध्यामों यथा नोध्सो अवीरहां ॥ (अथबें० १1१६।२-४)




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