एक और सैलाब | Ek Aur Sailab

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Ek Aur Sailab by मेहरूत्रिसा परवेज़ - Meharootrisa Paravez

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक बोर सैंलाव 5 पढ़ेगा । जैसे वहू अपने से प्रश्त का उत्तर दे रही हो । बिना उसकी राय फलिये वह आगे बढ गई । लकड़ी के बने लैम्पपोस्ट के आगे से गली मुड़ गई थी | कच्चे मांस की महक चारों तरफ फैली थी। गली के दोनों तरफ वने छोटे-ठोटे कच्चे मकानों के सामने ताजा मांस लटक रहे थे जिन पर सँकड़ों मविखियां मिनभिना रही थी । हरेक मकान के सामने ढेर सूअर वैठे सुस्ता रहे थे । यह क्या सुअर-मा्केट है ? हां। एक औरत मकान के बाहर झांकी बाबू कुछ चाहिए तो ले जाओ मात ताजा मिलेगा । दोनों बिना उत्तर दिये आगे वढ़ गये । भागे मकान की कच्ची दीवार से टिके दो बच्चे पके हुए मांस के टुकड़े के लिए लड़ रहे थे । आगे गली ईसाई मोहल्ले की सड़क पर खत्म हो गई थी। दो-चार मकान के वाद वाले एक घर के सामने स्कूल की यूनिफॉर्म में तीन बच्चे चुपचाप बैठे भूखी आंखों से सड़क की दोनों भोर देख रहे थे । उसे समझते देर नहीं लगी कि यही नीलू के बच्चे हूँ। नीलू जल्दी से सीढ़ियां चडकर दरवाजा खोलने लगी । सीढ़ियां घढ़ते उसमे देखा नीचे बाले घर पर ताला लटक रहा है--यानी पड़ोसिन कही चली गई थी । .. एक पत्रिका उसके आगे रखती नीलू बोली वैठो उमेश बच्चों को खाना दे आओ 1 अन्दर पटरे विछाने की आहट हुई । वह पत्रिका के पत्ने उलटने लगा। मम्मी मुझे दाल नही चाहिए सब्जी दो न । न्युप | नहीं मैं नहीं खाऊंगा पापा को काने दो मैं सब वताऊगा। . वा ले दबलू पापा थीमार है अच्छे होने पर अच्छो-अच्छी चीजें सार्ेगे + -_ . - डर




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