इन्दिरा गांधी बहुआयामी व्यक्तित्व | Indira Gandhi Bahuyami Vyaktitva
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.57 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 ९ इन्दिरा गाँधी « बहुआायामी व्यक्तित्व
पवनयिपसपनियरिनिपरनिनिनिपननयनििपयनपनियनिपयनिननपटनिपनिपडननिनियनियन
थी और उन्हें यह विलकुल गवारा न था कि वह “निरर्थक तथा निष्फल रहन-सहन
के नीरस छोटे-मोटे कामों के जाल में फेंसते जाएँ ।”
दिसम्बर, 1912 में युवा नेहरू ने पहली बार भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस के
बॉकीपुर अधिवेशन में भाग लिया । पार्टी की सदस्यता स्वतन्त्र थी और इसके लिए
केवल इतना ही काफी रहा कि मोतीलाल ने कांग्रेस के कतिपय कर्णधारों से अपने
पुत्र का परिचय कराया ।
अधिवेशन का वातावरण युवा नेहरू को बहुत अखरा। उसमे नरम विचार रखने
थाले काग्रेस सदस्य इकट्ठे हुए, इतना ही नहीं, वे मुख्यतः अग्रेजपरस्त थे ओर
हिन्दुस्तान को ब्रिटिश साप्राज्य से अलग करने की बात सोचते तक नहीं थे। ये
भारतीय बुर्जुआ, जमीदार और राष्ट्रीय वुद्धिजीवी वर्ग के प्रतिनिधि थे, जिसका अग
नेहरू परिवार भी था । कांग्रेस का वामपक्ष उस समय उपनिवेशवादी शासको के क्रूर
दमन-चक्र का शिकार बना और वाल गगाधर तिलक समेत उसके अधिकाश सदस्य
जेलों में बन्द थे ।
अग्रेजी भाषा, फैशमेवुल यूरोपीय वेशभूषा, परिष्कृतविदेशी चाल-ढाल, ब्रिटिश
राजतन्त्र का आदर और ब्रिटिश साम्राज्य की महिमा की स्वीकृति-अधिवेशन में यह
प्रयृत्ति विमान थी । वास्तविक संघर्ष की उत्कट इच्छा रखने वाले, आत्मबलिदान की
भावना से प्रेरित जवाहरलाल की कहीं कोई हलचल अथवा तनातनी नजर नहीं
आई-सब कुछ कायदे-करीने से, शान्त भाव से हो रहा था, हर कोई किसी को
तकलीफ न देने की चेप्टा करता था। एक चीज थी, जिससे वक्ता क्षुब्ध थे। यह थी
तिलक की उग्रचादी भावना । अधिवेशन शान्त, उदासीन, हलचल रहित वातावरण में
हुआ, औपनिवेशिक उत्पीड़न का बोझ उठाए करोड़ो भारतीय जनगण की दुर्दशा से
ये लोग, लगता था, तनिक भी विचलित नहीं हुए।
*'अभिजात सोसाइटी ””, “'निकम्मे अफसराना वर्ग का खेल ”--काग्रेस के
अधिवेशन के वारे में अपने पिता के साथ बाते करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने
टिप्पणी की |
पित्ता ने बहुत पहले अपने पुत्र में खतरनाक उग्रता की प्रवृत्ति देखी थी, जौ
इग्लैण्ड में शिक्षा प्राप्ति के काल मे प्रकट हो चुकी थी। तब मोतीलाल ने यह भी
सोचा था कि शायद पुत्र की शिक्षा भंग की जाए, उसे घर बुलाया जाए और इस
प्रकार संमाजचादियों के कप्रभाव से उसे बचाया जाए।
अब जवाहरलाल घर पर थे, परन्तु वस्तुतः यह स्थिति नहीं बदली-पिता का
जीवन ऊधिक शान्त नहीं हो पाया। इतना ही नही; चिन्ताओं का बोझ बढ़ गया।
काग्रेस पार्टी के उग्रपथी तत्वों का अनुसरण करते हुए जवाहरलाल देश के शासकों
की दो-दूक कट आलोचना करने लगे।
मोततीलाल को लगता था कि राजनीति के मामलों मे पुत्र का उम्रवादी रुझान
युवावस्था का लक्षण हैं शादी करेंगा बच्चे हो जाएँगें और सब कुछ ठीक हे
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