वेद और साम्यवाद | Ved Aur Samyavad
श्रेणी : भारत / India, सभ्यता एवं संस्कृति / Cultural
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.46 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समान और राष्ट्र का' शत्चु श
क्रान्ति के विरोधी--दांसता.की दुचलताएँ, वासना की ज्वालएँ
मानच-समाज में स्वाथं को * भावनाओं का सूत्रपात करती है ।
स्वार्थ की. लददर ने हृदय को श्मिभूत - किया. शीर सनुष्य
के थन्द्र श्रहमन्प्रता के भाव का उदय हुझा | ' मैं हूँ, की कुत्सित
भावना ने अपनी इच्छापूर्ति-कें लिये दूसरों का हक़ दहृड़प करना शुरू
किया । अपने चाणक सुख के लिये दूसरों का जीवन बरवाद करने में
थ्पने को चतुर समकने लगा । मदान्धता के वशीभूत हो झ्ात्मिक
पुकार को भूल गया । चस ! यही व्यक्तिवाद का विकृत रूप है। इस
वैथक्तिक दचि से बइ कर समाज श्योर राष्ट्रका कोई दूसरा शत्रु नहीं |
मनुष्य इस झ्यमन्यत्ता का चश्मा चढ़ा कर देश, जाति श्ीर ससार को
सूल जाता है, साथ ही अपनी चात्तचिक स्थित्ति को मी । इस भुलभुलइयाँ
में उसे यदि कोई चीजू रमरण रदती है तो केवल--'““मैं हूँ ! कुछ
नज़र श्रात्ता दै, तो समाज श्लीर राष्ट्र से कारे-कोसों दूर श्वपनी
स्वतन्त्र सत्ता !
चह समकता है इमारी झाज की झवत्था दी नास्तविक श्ववस्था है ।
चासना श्रौर स्वाथ परता श्रपनी विक्ृत शीर 'श्रधाकतिक अवस्था का
चोध दी नहीं द्ोने देती । न उते क्रान्ति शरीर नवनिर्माण का झसली
रददस्य दी समम झाता है । साथ ही क्रान्ति से जिन लोगों के स्वाथ' को
धक्का लगता दे वे मी उनके साथ मिलकर उस व्यक्तिवादी शक्ति को
सब प्रकार न सुद्दढ़ बनाते हैं।
सच तो यद्द दै कि क्रान्ति का विरोध प्रायः रूढ़ी अस्त-श्न्वपरम्परा-
नुगामी श्ौर स्वाथ भिय लोगों द्वारा ही सदा से दोता रद्दा है । सुकरात
ने भी इसका बहुत दो रपट उल्लेख किया दैः-- “प्राचीन परम्पराशओों तथा
चुस्सित रूड़ियों में फंसा हुया समाज निरतर पतन तथा श्रवनति की
श्रोर जाता दै । ऐसे समाज के धनीमानी जन उन रूढ़ियों के पालन में
बड़ी करता, तत्परता तथा श्रद्धा दिखाते हैं । उन्हें नवीन उन्नतिशीक्ष
विचारों से बड़ी घृणा होती है । चाहे जो दो वे नये विचारों का विरोध
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