समुद्र की गहराइयों में | Samudra Ki Gahraiyo Mai

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Samudra Ki Gahraiyo Mai by जुल्स वर्ने - Juls wrne

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सोचा कि ऐसा न हो कि इस जीव की तलाश में हमें फ्रांस तट पर ही जाना पड़े और ऐसा विचित्र जीव कहीं यूरोपीय सागरों में ही न पकड़ा जाय । लेकिन इसी बीच में मुझे ध्यान आया कि इस जीव की तलाश में तो हमें उत्तरी प्रशांत महासागर की ओर जाना है । यह रास्ता फ्रांस के रास्ते से बिल्कुल भिन्न है । मैंने जल्दी से पुकारा कनसील कनसील 1 कनसील मेरा विद्वस्त और वीर नौकर था । वह हालेंड का रहने वाला तथा मेरी समस्त यात्राओं में मेरे साथ रहता आया था । मुझे उस पर बहुत विद्वास था । चहू अपनी बात का बहुत पक्का और बहुत ही चतुर था । वेज्ञानिकों के संपकं.से उसको विज्ञान का कुछ ज्ञान भी हो गया था । नौकरी के पिछले १० वर्षों में वह मेरे आदेशों का अक्षरश पालन करता रहा था / वह यात्रा की थकावट या दूरी से कभी घबराया न था । दूर से दूर जाने में उसे जरा भी हिचकिचाहट न थी । अपनी सुदूढ़ देह उत्तम स्वास्थ्य तथा दान्त स्वभाव के कारण सदा चुस्त और आनंदित रहता था । उसको उमू कोई ३० वर्षे की थी और मेरी चालीस वर्ष की । कनसील में एक दुर्गण था वहू॒ मुझे सदा अन्य-पुरुष में संबोधित करता था । पुकारते ही मेरे सामने आ कनसील ने कहा क्या स्वामी ने मुझे बुलाया है ? हां हम लोग एक यात्रा के लिए चल रहे हैं । तुम दो घंटे में तेयार हो जाओ । एक भी मिनट खराब न हो। मेरे सारे सफरी बर्तन तथा कोट कमीज मौजे जितने तुम रख सको १६




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