श्री विष्णु धर्मोत्तर में मूर्तिकला | Sri Vishnu Dharmottar Mein Moortikala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sri Vishnu Dharmottar Mein Moortikala by बद्रीनाथ मालवीय - Badrinath Malviy

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बद्रीनाथ मालवीय - Badrinath Malviy

Add Infomation AboutBadrinath Malviy

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पि ( २ ) शिल्परत्न, श्री तच््वनिधि, कुमारतन्त्र देवतामूत्तिप्रकरण दि ग्रन्थों में सूर्ति-निर्माण के नियम दिये गये हैं तथा झग्नि, मत्स्य, कर्म, माकरणडेय इत्यादि पुराणों में भी यत्र-तत्र इसका वणुन झाया परन्तु विष्णुधर्मोत्तर में प्रतिमाझयों का विधान विशद रूप से किया गया है इसके तृतीय खंड में ४४ से ८५ झध्यायों तक अनेक भिन्न-भिन्न देवताओं के स्वरूप तथा लक्षणों का प्रतिपादन किया गया है तथा उसके पृ के अध्यायों में प्रतिपादित विषय चित्रसूत्र, नृत्य, आतोद्य, गीत तथा छन्द शास्त्र आदि भी ्नषंगिक रूप से कहे गये हैं, क्योंकि ये सब एक दूसरे से सम्बद्ध हैं प्रतिमा क्या है--प्रतिमा का अथ तुल्यता, रूप या प्रतिबिस्व है | ये शब्द सम्मिलित रूप से प्रतिमा में निहित विचारों के द्योतक हैं | झ्त्यन्त प्राचीन काल से ही हिन्दुद्मों का ऐसा विश्वास है कि प्रतिस! सवंशक्तिमान्‌ परमात्मा की छाया या रूप है । वेदान्त के अनसार इश्वर निरगण है, उसका कोई रूप नहीं देखा गया । भारतीय संस्कृति के मर गायक गोस्वामी तुलसीदास की पंक्तियों में इसी भाव की प्रतिध्वनि निकलती है :-- “बिन पद चले सुने बिन काना कर - बिन कमे करे बिधि नाना। आनन रहित. सकल रसभोगी बिन बाणी वक्ता बड़ योगी ॥! तनु बिन परस नयन बिनु देखा, ग्रहे घाण बिन वास बिशेखा अस सब भाँति अलोकिक करणी महिमा तासु जाय किमि बरणी ॥। परन्तु ऐसी भावना सिद्धान्तरूप में उच्चकोटि की होने के कारण स्रसाघारण को वोधगम्य नहीं हो सकती, उसकी वास्तविक तृप्ति | वपिकिकनण




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now