ब्रह्मवैवर्त पुराण | Bramhavaivart Puran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.43 MB
कुल पष्ठ :
239
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३. वृत्ति- जीवों के जीवन निर्वाह की सामग्री भागवत् के अनुसार चर पदार्थों की अचर पदार्थ वृत्ति है। मानव जीवन को चलाने के लिये जिन वस्तुओं का उपयोग मनुष्य करता है वही उसकी वुत्ति है। चावल गेहूँ आदि अन्न सब वृत्ति के अन्तर्गत आते है। कुछ वृत्तिको तो मनुष्य ने स्वभाववश अपनी कामना से निश्चित कर लिया है और कुछ वृत्ति को शास्त्र के आदेश के कारण वह ग्रहण करता है। दोनों का उद्देश्य एक ही है मानव जीवन का धारण तथा सरक्षण। ४. रक्षा- इसका सम्बन्ध भगवान् के अवतारों से है। भगवान् युग-युग में पशु-पक्षी मनुष्य ऋषि देवता आदि के रूप में अवतार ग्रहण कर अनेक लीलाए किया करते हैं। इन अवतारों के द्वारा वे वेदत्रयी-वेदधर्म- से विरोध करने वाले व्यक्तियों का सहार भी किया करते हैं। इस कारण भगवान् की यह अवतार-लीला विश्व की रक्षा के लिये ही होती है। इसलिये इसकी सज्ञा है-रक्षा। भागवत ने इस पद्य के द्वारा अवतार-तत्त्व के हेतु पर प्रकाश डाला है। आवतार का लक्ष्य वेद के विरोधियों का सहार करना तथा वेदधर्म की रक्षा करना है। श्रीमदभगवदुगीता के प्रख्यात श्लोकों की ओर यहा स्पष्ट सकेत है। परन्तु त्रयीद्वेषकों का हनन विभु भगवान के लिये तो एक सामान्य कार्य है। इसी के लिये वे अवतार का ग्रहण नहीं करते प्रत्युत लीला-विलास ही उसका प्रधान लक्ष्य है जिसका चिन्तन तथा कीर्तन करता हुआ जीव इस ताप बहुल संसार से अपनी मुक्ति प्राप्त करने में समर्थ होता है। लीला के द्वारा आनन्द-रस का आस्वादन कराना तथा करना ही भगवान् के अवतारों का लक्ष्य है। भगवान् अपनी इच्छा से ही देह का ग्रहण करते हैं भक्तों की आर्तपुकार इसमें कारणभूत अवश्य होती है परन्तु रहती है भगवान् की स्वेच्छा ही प्रधान प्रयोजिका। भक्तों का रक्षण करना भी उनकी ललित-लीला से बहिर्भूत नहीं होता। जीव को मुक्ति प्रदान करना ही सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान परमात्मा का एकमात्र लक्ष्य होता है। भाग० पु० - १२८७/८१३ भाग० पु० १२/७/१४
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