शरीर - श्रम | Sharir - Shram
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.88 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ः बौद्धिक श्रम श्छ
थरीर-श्रम नहीं कर रहा हूं। और यह भी ओेक कारण है कि
में अपनेको मित्रोंके दान पर जीनेवाला कहता हूं । लेकिन मैं यह
भी मानता हूं कि हरबेक राष्ट्रमें जैसे मनुप्योकी आवश्यकता है, जो
अपना थरीर, मन और आत्मा सब कुछ राप्ट्रको भअर्पण कर देते
है और जिन्हें अपनी माजीविकाके लिअे दूसरे मनुष्यों पर भर्यात्
ओऔदवर पर आधार रखना पड़ता है।
हिन्दी नवजीवन, ५-११-२५; पृ०् ९५
द्
वौद्धिक श्रम
मनुष्य अपने वौद्धिक श्रमकी कमाभी क्यों न गायें ? नहीं, यह
ठीक नहीं है। दारीरकी आवश्यकताओंकी पति घारीरिक श्रमने ही
होनी चाहिये ।
केवल मस्तिप्कका, भर्वात् चौद्धिक, श्रम तो जात्माफे प्रीत्ययं है
गौर वह स्वत: सतोपरूप है। अुसमें पारिश्रमिक मिलनेकी जिच्ठा नहीं
करनी चाहिये । अुस आदर अवस्वामें डॉक्टर, वकील लादि पूर्णतः
समाजके हितके लिअे ही काम करेगे, अपने लिंजे नहीं । शारीरिक
श्रमके नियम पर चलनेसे समाजमें अेकफ घातिमय क्रांति पैदा होगी ।
जीवन-सग्रामके स्थान पर पारस्परिद्त सेवाकी प्रतित्पर्थों स्थापित
करनेमें मनुप्यफी विजय होगी । पागसिक नियमका स्थान सानयीय
नियम ले लेगा ।
हुरिजनसेवक, ५-३-३५; पृ० १६०
मुये गलत नहीं समया शायें । में बोद्िक समके सुल्यकी सयययना
नहीं फरता हूं; सफिन बौद्धिक सम फितनी हो सामामें स्यो ने शिया
जाय, बुमने घरीर-भमकी थोड़ी भी झतियूति नहीं होती, जो कि एममेंसे
जि
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