वैदिक उपदेश माला | वैदिक उपदेश माला

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एकान्त-बिचार | प्र कला सत्य चोलना चाहिये तो किसी समय बैठ कर मुझे सोचना चाहिये कि यद चांत कददां तक ठोक हू? यदि ठोक है तो मैं संत्य क्यों नहीं चोलता हूँ; किन किन प्रलोभनों अथवा भरयों के न्कारण श्रसत्य बोलता हूँ; उनके जीतने का उपाय क्या है! “अश्त्य से मेरी क्या ददानि हुई है ? सत्य का जोवन में किन किन “चस्तुओं से सम्बन्ध है. ? इत्यादि इत्यादि सत्य पर खबर विचार करना चाहिए । इस प्रकार यह वस्तु मेरी हो जावेगी 1 -नहीं तो यदि मैं सत्य पर एक चड़ी भारी पुस्तक भी पढ़ डासूं; परन्तु इस पर कभी स्तयं विचार न कहूँ तो मेरा सत्य से क्रभी भी कोई भी सम्बन्ध नहीं स्थापित होगा; सत्य सेरे जीवन में नहीं श्राविगा | जेवे कि बाहर रखे हुए भोजन का मेरे शरीर से कुछ सम्पन्ध नहीं है ऐसे ही पुस्तक पढ़ लेने पर. भी मेरा “सत्य से कुछ सम्बन्ध नहीं द्ोगा । इसके लिये तो विचार करना “चाहिए, मनन करना चाहिये; चोर ज्ञो मनुष्य मनन करने वाला उसे तो इतना ही ज्ञान सिलना पर्याप्त है कि सत्य घ्रोलना चादिये ” | चहं सनन द्वारा इसका स्वयमेत्र विस्तार कंर लेगा अाँर इस अपने में घारणु भी कर लगा | हम में से कईयों को बड़ी च्दी पुस्तकें पढ़ ने था 'लम्वे लम्वे पड्याख्यान सुनने का चयसन होगा परन्सु यदि एक बाव को लम्वा दी करनां हू तो मैं उन्हें यह सन्ञाद दूंगा कि वे उत्ते अपने सन द्वारा उस पर मनन कंरे उसे 'लेग्वा कर लिया करेंद- इंसकी अपेक्षा कि वे एक लम्ची पुस्तक पढ़ या एक लम्बा व्याख्यान सने अरने लननन




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