समुन्द समाना बून्द में | Samunad Samana Bunad Me

Samunad Samana Bunad Me by आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चैतिकता की भी उतनी ऊँचाई नहीं है । पश्चिम के भौतिकवाद की भी एक सामय्य है हमारे आध्यात्मवाद में उत्तनी भी सामथ्यं नहीं है वहू उससे भी ज्यादा निर्वीय नपुसक सिद्ट हुआ है । इसलिए प्रभाव उनकी तरफ से हमारी तरफ बहता है । इसमें दोप उनका नहीं है । पहाड़ पर पानी गिरता है लेकिन गिरा हुआ पानी भी पहाड़ से नीचे उत्तर जाता है क्योंकि पहाड़ की ऊंचाई बहुत है। यह हो सकता है कि एक झील में पानी न गिरे एक गढढे में पाची न गिरे लेकिन पहाड़ पर गिरा हुआ पानी वहुकर थोड़ी देर में गड्ढे में भर जायगा । गड्ढ़ा यह कह सकता है कि पानी मुझमें भरकर मुझे ्रष्ट कर रहा है । लेकिन गड्ढे को जानना चाहिए कि वह गड्ढा है इसलिए पानी भर हा है। वहाँ खाली जगह है वहाँ निचाई है इसलिए प्रभाव चारों तरफ से दौड़ते हैं और भर जाति हैं । भारत की आत्मा रिक्त और खाली है इसलिए सारी दुनिया उसे कभी भी प्रभावित कर सकती है । जिनकी आत्माएंँ भरी हैं मृद्ध हैं वे प्रमावित नहीं होते हैं बल्कि प्रभावित करते हैं । यह दोप देने से कुछ भी न होगा कि पश्चिम की शिक्षा और संस्कृति हमें विकृत कर रही है। यह ऐसा ही है जैसा गड्ढा कहे कि पानी भर करह में नष्ट किया जा रहा है। गड्ढे को जानना चाहिए कि मैं गड्ढा हूँ इसलिए पानी मेरी तरफ दीड़ता है । अगर मैं पहाड़ का शिखर होता तो पानी मेरी तरफ नहीं दौड़ सकता था । लेकिन हम गाली देकर तुप्त हो जाते हैं और सोचते हैं कि हमने कोई कारण खोज लिया । हम सोचते हैं हमने पश्चिम को दोप देकर कोई कारण खोज लिया । हम बिलकुल नहीं देख पाए कि हम गड्ढे की तरह हैं । कुछ लोग हैं जो कहेंगे कि हजारों साल से भारत गुलाम था इसलिए न्दीनहीन दरिद्र दुखी और पीड़ित हो गया है। वे भी गलत कहते हैं । उनकी आँखें भी बहुत गहरी नहीं हैं किसी की आत्मा को देखने के लिए । गलामी से कोई मुल्क पतित नहीं होता है पतित होने से मुर्क गुलाम हो जाता है । गुलामी से कोई कैसे पत्ित हो सकता है ? और बिना पतित हुए कोई गुलाम चकीसे हो सकता है ? किसी कौम को मरने की हमेशा स्वतंत्रता है लेकिन जो सोग मरने के मुकाबले में गुलामी को चुन लेते हैं वे ही केवल गलाम हो सकते हैं। हम मृत्यु से इतने भयभीत लोग हैं कि हम कैसा भी दीन-हीन दलित शोर परों मं पड़ा हुआ जीवन स्वीकार कर सकते लेकिन मृत्यु को वरण करने की हिम्मत हमने बहुत पहले खो दी है । हम इसलिए नहीं नीचे गिर गए कि हम पृ




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