बचपन किशोरावस्था युवावस्था | Bachapan Kishoravashtha Yovastha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : बचपन किशोरावस्था युवावस्था - Bachapan  Kishoravashtha Yovastha

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गिरिजा कुमार सिनहा - Girija kumar sinaha

Add Infomation AboutGirija kumar sinaha

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
७ “ कितना भला आ्रादमी है यह! कितना प्यार करता हैं हम लोगों को। और मैं हूं कि अभी ऐसी मैने मन ही मन कहा । वुरी वातें सोच रहा था इसके वारे में , ” मुझे भ्रपने भ्रौर काले इवानिच के ऊपर यड़ी खीझ झा रही थी। चाहता था कि हंसूं और रो पड़ । मेरा हृदय विचलित हो उठा था। मेरी झांखों में आंसू भर थ्राये और तकिये के नीचे से सिर निकालकर मैँ रोनी झ्रावाज़ में , जर्मन में ही वोला - «801, 18558 झं०, * कालें इवानिच ! ” कार्ले इवानिच श्रचम्मे में आर गया । मुझ्ने गुदगुदाना छोड़कर वह मेरा मुंह देखने लगा श्रौर घदराकर मेरे रोने का कारण पूछने लगा। “कोई वदुरा सपना तो नहीं देखा तुमने? ” उसका वह दयालु जर्मन चेहरा मुझे याद रहेगा। मेरी त्रांखों में आंसू देखकर उसमें जो सहानुभूति और उद्दि्तता थी उसे मैं नहीं भूल सकता। में फूट पड़ा। मुझे वड़ी ग्लानि हो रही थी। में हैरान हो रहा था कि कैसे श्रमी एक ही क्षण पहले मैंने काले इवानिच को दुप्ट कहा था झौर उसके पहनावे तक से मुन्ने घृणा हो रही थी । अब वहीं पहनावा मुझे कितना भला लग रहा था-वह॒ घुटने के नीचे तक लटका ड्रेसिंग-लाउन , लाल टोपी झ्ौर फुदना । यह फुदना तो श्रव खास तौर से मुझे उसकी नहदयता का चिन्ह मालूम हो रहा था। मैने कहा, यों ही रो रहा था -दरब्रसल मैं सपना देख रहा था कि श्रम्मा मर गयी हैं ्लौर लोग उसे दफ़नाने कब्रिस्तान ले जा रहे हैं। यह मँने सोलही झ्राना झूठ कहा था , क्योंकि सच तो यह है कि मुझे उस रात के सपने याद ही न थे। लेकिन मरे सपने की कहानी सुनकर कालें इवानिच का हृदय उमड़ झाया आर लगा वह मुझे ढाइस देने। उस वक़्त मुझे लगा कि सचमुत्र ही मैने ऐसा * [छोड़िये मुझे] पी ्ठ 2-15




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now