प्रेरक प्रसंग | Prerak Prasang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[4 / प्रेरक प्रसंग बारह वर्ष वाचस्पति मिश्र का नया-नया विवाह हुआ था । वह एक ग्रंथ लिख रहे थे । लिखने में उन्हें दिन-गत का होश ही नहीं रहता था । शत में दीपक की रोशनी में लिखते रहते । दीपक का तेल खत्म होने पर उसमें तेल कौन डालता है इसका उन्हें पता भी नहीं चल पाता था । एक रात लिखते-लिखते उन्होंने सिर उठाकर देखा कि एक स्त्री दीये में तेल डाल रही है । वह बोले आप कौन हैं ? खरी ने उत्तर दिया मैं आपकी पत्नी भामती हूँ । वाचस्पतिं बोले अच्छा-अच्छा तो आप मेरी पली हैं अंथ पूरा होने में बारह वर्ष लग गए । उन्होंने ग्रंथ का नाम ही भामती रख दिया । ईश्वर एक शिष्य ने गुरुजी से पूछा ईश्वर कहाँ है 2 गुरुजी ने कहा सबमें । तभी रास्ते पर एक हाथी बेकाबू होकर भागता नजर आया । पीछे-पीछे महावत चिल्ला रहा था रास्ते से हट जाओ हाथी पागल है । गुरुओ एक तरफ हो गए पर शिष्य गुरुजी की बात याद कर रास्ते पर ही खड़ा रहा और सोचने लगा कि जब सबमें ईश्वर है तो इस हाथी में भी होगा हाथी चिंधाड़ता हुआ शिष्य के पास आया और उसे सुँड से उठाकर दूर झाड़ियों में फेंक दिया । शिष्य को बहुत चोट आई | गुरुजी उसे देखने गए तो उसने पूछा आपने तो कहा था ईश्वर सवें है फिर ऐसा क्यों हो गया ? गुरुजी ने कहा ईश्वर तो उस महावत में भी था जो हाथी के पीछे पीछे




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