काव्य विनोद | Kavya Vinod

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Kavya Vinod by श्री पं० लक्ष्मीनारायण मिश्र - Shree Pandit Lakshmeenarayan misr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) ही धर्म और एक ही जाति के इन राजाओं से इस निरन्तर के संघषे ने इनकी राजनीतिक और धार्मिक दूरदुर्शिता को भी सार डाला । इन राजपूतों की संघ शक्ति छिन्न-भिन्न होगई। आपसी कलह से इन्होंने बाहरी शत्र को बढ़ने का मौका दिया । सुसलमान आक्रमणकारी उस समय इस देश पर पश्चिसोत्तर सार्गों से घावा मार रहे थे। देश की इस विषम परिस्थिति मे उन्हे और भी मौका मिला । फल यहद हुआ कि उनके आक्रमण के उद्देश्य मे भी मौलिक परिवतन हुआ और सहमूद ग़्जनी की लूट की नीति बदल कर सोरी की इस देश में राज्य कायम करने और थम फैलाने की नीति हो गई । मुदम्मद गोरी ने प्रथ्वीराज को पराजित कर मुसलमानी मरडा दिल्ली मे यमुना के किनारे लहरा दिया । उसके बाद कन्नौ ज-कालिल्नर के पतन से मुसलमानी राज्य की जड़ इस देश मे जम गई । इस काल के हिन्दू कायर नहीं थे | बीरता का आदश उनका बहुत ऊँचा था - द्रौविधोी पुरुषों लोके सूयेमंडल सेदिनौ महाभारत युग का यह आदेश इस युग मे सबमान्य हो चुका था । युद्धक्ष त्र मे मरने वाला वीर सूये मण्डल भेदकर स्वर्ग प्राप्त करता है इस युग के जपूतों में झडिग विश्वास बन गया था । किन्तु विजय केवल शारीरिक बल मर मिटने की चाह पर हीं सिभर है उसके लिए सामाजिक और राजनीतिक विबेक की ज़रूरत पड़ती है। इस विवेक के अभाव मे राजपूतों ने लड़कर प्राण तो दे दिया किन्तु विजय न प्राप्त कर सके । रणथम्भोर के हम्मीर देव के रूप में राजपतों की वीरता ने अन्तिम बार श्रयत्न किया किन्तु घर में जब चार ओर से आग लग चुकी थी वह जलकर भस्म होगया | जो आक्रमण साववी सदी में आरम्भ हुए थे तेरहवी शताब्दी में खफल हुए और इस देश में अलाउद्दीन खिलजी के समय में सारा उत्तर भारत के मुसलमान अधिकार मे आ गया |




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