त्योहारपद्धति | Tyohaarapaddhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हर स्वस्थावस्था के बिना स्थावर तथा जंगम सष्टि एक दूसरी का उपकार करने में असमर्थ है चह स्वस्थता पूर्णतया इश्वर के और बहुत झंशो में आायुवेदविदों के शाधीन हे इश्दर प्रथम कसामें रक्षक उससे दूसरी कन्तामें जनता के रक्षक झायुर्वेद्विद्द्दी हैं। जनता का श्राहार बिहार शा घेद्विदों के ही द्वारा निश्चित हुआहैं । श्रायुवेंद्विदों का विचारहे कि यह समस्त रचना संस्कारों के द्वारा ही निमार्ण हुई है शायुवेद थिंदों ने संस्कार के शुद्ध करने वाले संकुचित अर्थों को झहण मे कर संस्कार को चार झर्धों में विभक्त किया है पदार्थ को शुद्ध करना पदाथ में पदाथे का समाधेश करके द्वितीय आार्कति में परिणत करना हीन गुण को झद्धितीय गुण वाला कर देना सदुको कठोर श्रौर कठोर को खदु करना पदार्थों में जो कुछ गुण हैं सब संस्कार ही द्वारा प्राप्त होते हैं । यहां यह बात जाननी भी श्रावश्यक है कि जिस पदार्थ में जिस संस्कार द्वारा जिस गुण का श्राधान करा गया है यदि उसकी स्थिति का ध्यान समयाजुकूल न रकक्‍्खा जाय तो शाधान किये हुए का शनेः २ ह्वास होकर पदार्थ का स्वरूप में रहना कठिन है । उदाहरण के लिये बहुत पदार्थ हैं पर नित्य व्यवहार में श्राने वालों के उदाहरणों से पाठक सुगमता से जानेंगे । ऊख सरकंडे से बनाई गई है नारंगी नींबू से मूली का आधिष्कार तरेसे हुआ है शलजम का मिकास लाई से है। जिन संस्कारों द्वारा उक्त ऊख श्रादि की श्राकृति निर्माण करी गई है यदि उन श्राकृतियों तथा गुण की स्थिति का ध्यान न रक्‍्खा जाय तो प्रत्येक का झपने २ पूर्वरूप में परि- लात होजाना सहज बात है । पत्र मनुष्य शरीर में मजुष्यता के पोषक जो संस्कार जन्मतः ऋषिगण द्वारा उत्पन्न करे गये




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