अथर्ववेदीय मन्त्रविद्या | Atharvavediya Mantravidhya

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Atharvavediya Mantravidhya by प्रियरत्न आर्ष - Priyratn Aarsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ | मन्त्र तथा मन्तविद्या का स्वरूप पतन्बोक्त मारणो्याटन वशीकरणादि आभिचारिक क्रिया का प्रसज् अथवे संहिता में पाया जाता है सही किन्वु तन्ब्र के अन्यान्य प्रधान लक्षण नहीं मिठते । ऐसी दशा में तन्त्र को हम अथवे-संहितामूलक नहीं कह सकते । ( हिन्दुत्व ) । मन्त्र का मनोविज्ञान के साथ तन्त्र का सूचम भौतिक विज्ञान के साथ और यन्त्र का सूदम तथा स्थूल भौतिक विज्ञान के साथ सम्बन्ध है । कला मेशीन आदि को यन्त्र कहते हैं यन्त्र में अमाजुषी गुप्त शक्ति होती है सकड़ों और सहस्त्रों मनुष्यों का काम अल्पकाल में ही यन्त्र द्वारा हो जाता है. । रेलगाड़ी प्रथम-प्रथम जब चलने को थी तो कहा जाता था कि एक गाड़ी ऐसो चलेगी जो बिना बेलों के या घोड़ों के हजारों मनुष्यों को ब्पपने में बिठाकर ले जावेगी लोग इसे जादू की बात समझते थे । एवं सिनेमा के चित्र दिखाने वाली लालटेन को अभी भी मैजिक लालटेन या जादू की लालटेन कहते हैं । कछाएं मेशीनें स्थूढ भौतिक विज्ञान है और अटटपरूप शक्ति सूदम भौतिक विज्ञान है । प्रथिवी जैसे भारी गोते का नियन्लण भी यन्त्र द्वारा ही हुआ डुआ है सविता यन्त्रे प्थिवीसरग्णादस्कर्सने ( ऋण १०। १४६ । १ ) अथोत्‌ सूये ने यम्त्रों-अद्दप्ठ शक्तियों द्वारा प्रथिवी को निरालम्ब आकाश में सम्भाला हुआ है.। तन्त्र शब्द से फेलने बाले प्रयोग झमीष्ट हैं जो प्रथिवी जठ और बायु में बिछाये फेलाए जा सकते हैं। जो कि विषैठी ओषधियों विद्युत की लहरों द्वारा रचे जाते हैं । वे दृष्ट हो--अख्ों (बम ) के रूपमें




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