शासन यन्त्र | Shasan-yantra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
113.7 MB
कुल पष्ठ :
481
श्रेणी :
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इलयास अहमद - Ilayas Ahamad
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विष्णुदत्त मिश्र - Vishnudatt Mishr
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७ शासन-यन्त्र की कसौरी क़ानून के प्रति श्रद्धा और अरस्तू के वर्गीकरण की नैतिक धम है क्योंकि राज्य एक नेतिक समाज है जिसका अस्तित्व सदूरुण की चर्मोन्नति के लिये है । इसलिये पूण॑ रूप से आत्मिक विकास को कार्योन्बित करने वाले राज्य साधारण श्र इस _ उद्देश्य से दूरवर्त्ती असाधारण या निकृष्ट कहलाये । स्वयं अरस्तू का वर्गीकरण के विषय में निम्नलिखित विचार है । (3) यह स्पष्ट है कि सम्पूर्ण राज्य में शासन या. परघन्ध के लिए एक से प्रघान शक्ति की आवश्यकता है । यह सब प्रधान शक्ति अनिवायें रूप से एक या कुछ अथवा बहुत मनुष्यों के हाथों में होती है। जब राज्य सब साधारण के हित के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं. तब वे सुब्यवस्थित कहलाते हैं । और जब शासकों के स्वार्थ के लिए चाहे उनकी संख्या एक हो कुछ हो अथवा बहुत इस शक्ति का प्रयोग होता हे तो राज्य कुव्यवस्थित होते हैं । क्योंकि हमको यह मासना पढ़ेगा कि जो समाज के अंग हैं वे या वो नागरिक नहीं हैं नहीं तो उनको शासस से लाभ दठानें का अवसर मिलना चाहिये । साघारणुतः जन साधारण के हित के लिए एक व्योक्ति के राज्य को एकतन्त्र और एक 7 अधिक किन्तु केवल कुछ हो व्यक्तियों के राज्य को शासन के सुयोग्य नागरिकों के हाथों में होने अथवा नगर निवासियों के लिए अत्यन्त हितकर होने के कारण कुन्लीस-तन्त्र कदते हैं । जब नागरिक एक घड़े पैमाने पर जनता के हित के लिए शासन करते हैं तब इसे बहुतन्त्र (९0116) कहते हैं + इनके भ्रष्ट रूप हैं कठोर शासन एकतन्त्र का अल्प-जन-तन्त्र छुलीन-तन्त्र का र प्रजातन्त्र बहुतन्त्र का कठोर शासन का उद्देश्य केवल एक व्यक्ति का स्वाथ अल्प जनतन्त्र का केवल घनिक बगे का झौर प्रज्ञातन्त्र का केवल निधन बरग का स्वा्थ होता है परन्तु किसी के दृष्टि में सावजनिक डित नहीं है । इस प्रकार रस्तू ने विभिन्न शासनों फ्रे उद्देदय पर भी बिचार कियाँ है । सावंजनिक हित का ध्यान रखने वाले शासन साधारण औौर व्यक्तिगत बलवद्धि के लिये. संचालित शासन निद्मष्ट कहलाते हैं। उसके बिचार में एक तन्त्र कुल्लीन तन्त्र और _ बहुतन्त्र क्रमश सब जनसाघारण के हित के लिये एक व्यक्ति का शासन कुछ ब्यापक हित के लिये बंशागत गुणों से युक्त कुछ व्यक्तियों का शासन तथा सबंसाघारणु की भलाई के लिये मध्यम वर्ग का शासन हैं । इसी प्रकार कठोर शासन-शल्प-जन-तन्त्र _ तथा प्रजातन्त्र शासनों से उसका तात्पयं क्रमशः व्यक्तिगत बल-्वृद्धि के लिये तथा निधन वें के स्वाथे के लिये शासनों से हैँ |. १. 106 ?णघं८5 .. घी... ठैपडिए0पघो6 . छिएलाप्ाण्या5 त0िि्शाफ़ एप... 78-79 झारस्टाटेल की पालिटिक्स पुष्ठ ७८-७६ । र--ब्लन्द्शली (8००८8) का कथन है कि प्रजातन्त्र निर्धन या अशिक्षित जनता का पनमानी शासन (0८1010८९8०9) कहा जा सकता है ४४ 16०77 ० ६५७ 5८806 0. 33) इस संस्करण में सार्वजनिक दवित का ध्यान रखने वाले शावन का नाम राज्य दिया हे |
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