सोने की ढाल | Sone Kee Dhal

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Sone Kee Dhal by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिमियन बिन इय्ला श्भ प्रकट की । उसने अपने सिर को उसकी गर्देन से मिलाया । इसे पर लड़के में उसे अपने पास लेगर उसके सिर पर धीरे-धीरे ह्वाथ फेरना आरम्भ किया । शिव भी पास आकर हँस पढ़ा । बदरिया ने इस पर फिर श्रोठ हिलाया और दाँत दिखाया । शिव-- कितनी देर से तुम यहाँ हो तारा ? किस्तु बदरिया ने कुछ जवाब न दिया उसने सिफ अपनी पलवे नीचे ऊपर की और अविश्वासूण दृष्टि से उसकी ओर देखा । वह शान्ति भजद है और वहाँ से इसे हटाना चाहता है जहाँ नि उसकी स्वाथ अथवा हुदय है 1 शिव--अच्छा यदि इसे--क्या नाम लेकर कह तुम जानती हो तारा ? यदि इसको विरोध नही है तो मेरा भी इसके लिये कोई आग्रह नहीं सिवाय इसके कि तारा यह मेरा विस्तरा है इस पर मेरा अधिकार है. तुम अपने सोने के लिये कीई दूसरी जगह ढढ लो । यह यहा रसोइया जी हैं । उसने भोजनागार मे रसोयया की खटपट सुन वर सडके से कहाँ तुम बडे बेवकूफ हो ? तुमने सारा दिन सोने में गेंवा दिया यही नहीं बल्कि नाश्ता भी आधा खोया मध्याह्त का भोजन बिल्कुल ही चला गया और चार बजे का जलपान भी से मिला । भला यह घटी कसे पूरी वर सकोग ? लड़का अब भी बन्दरिया के सिर पर हाथ फीर रहा था उसके लिये शिव का सारा बडबडाना अधहीन था । उसने उसमे से एक शब्द भी ते समझा । उसके लिये वदरिया का #टकटाना और उसका बोलना यह दोनो एक सा ही था । शिव ने अब संकेत द्वारा बात वरना आरभ किया उसने भोजनागार की ओर इशारा करके अगुली को कान पर लगाया । रसोइया जी के थाली परोसने की आवाज सुनी । उसने अपना मुह खोला गौर फिर हाथ से ग्रास डालते की सकल बनाई तंब मुह चलाने और कूचने का अभिनय किया । उसने आखो और हाथा से एक साथ इशारा करते हुपे कहा-- चलो चलें भोजन तैयार है । लड़ना बिस्तरे से उठ खड़ा हुआ और उसने तारा को. वही छोड दिया । मगर उसने अपने बदसरिया-कोप के सारे शब्दों का व्यय करते हुए उसके इस असभ्यतापुण व्यवहार का विरोध किया 1 जब लड़का को कमरे से बाहर निकलने के लिय तँयार देखा तो तारा भी बिछौने से नीवे कूद कर आंगे-आगे भाग चली भोजनागार का द्वार खुला देख वर उसमें घुप्त गई फिर कमरे की विभाजक काष्ठ- भित्ति पर एव खूटी को हाथ में पकड़ कर बेठ रही । यह उसका सोने का 7 स्थान था 1 जब सब लोग खाने के लिये बठ गये. तो शिव ने लड़के के पास




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