सिद्धांत प्रकाश | Siddhant Prakash

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Siddhant Prakash by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दा सिंडन्तप्रेकोश। वधू च्यत्यत सुख इतपन्नह्ोताह (कॉर्ेन्ट्रियंसिदिरिशडिक्षया- संपसः ६ ) तपुंके अभ्यास करेंने से इन्द्िंयोंकी सु्ष्म दृष्टि होजाती हे जों दूरदेशंमें सी बंस्तु रंदसी है अथवा प्वेतांदिंकों में है सो बस्तें भीं तिसंके नेत्रों के सन्मंख प्र- तीतिहाती है इतनी सामध्य तिसकी होती है ( स्वाध्या- यादिएदेवंतासंघ्रयोगः£ )8कार पर्वक 'इष्ठसूंचके जपकें च्यस्यास :करनेंसे जिसदेवता के दुरशनकी ईच्छाहीवे सो देवता तिसको- प्रत्यक्ष होजाताहे ( तंतोंदंन्ड्रीनिमिघातः १८) ब्मासन के जयकरनेसे शीतोष्ण क्षुधा, दृंषोंदिक : संता नहीं सक्तेहैं झासनकी सिंद्धिके आ्यनेतर प्राणायाम कीसिद्िह्दीती है ( ततःश्ीयतेप्रकाशावरणश् ११ ) प्रा- एयोंमें के.सिद्धहोनेसे चित्तगत जो छेशंरंपीं व्मांवरंण है. सो नाशको प्राप्त हीजाता है स्थंतिः ( मानसंचाचिकं: चारपिकायिकंचापिंयकृंतेंसूं तत्सबैनाशयेत्पाप॑प्राणंयाम' येणवे १ ) मनकंरके'वाणीकररके शरीर कररकें जों पाप क्रियेहें सो सस्पूर्ण पाप तीनप्ाएयासकरनेसे नष्टहोजा तेहें (देहयतेध्यानसंन्रिणघातूनांहिमलेंयथातंधेन्द्रियस्य देहयंतेदोषाःप्राएंस्यसंयमात्२) जेसे सच शादिं घांतुंा के मंत्र अग्निमें घसाने से दर्घट्दोजाते हैं तैसे भाणों के उन सटे 3 रोकनें से अथात्‌ प्राणायांमके कंरनेसें इान्ट्रिया के दॉप सर्य दग्ध होजाते हैं-अद: प्रत्याह्वरका फल दिखते हैं जेंसे मंघकर राजाके .तुसार अन्य मक्षिका होंती हूं तिसीप्रंकार इन्द्रियमी चित अनुसारी होजातह च्यार घारणा का फल चितकी स्थिरता है तिससे शीघ्रहमा स- साचिका लाभ होता है प्यादका फल दिखाते हू स्वत




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