योग की उत्पत्ति और उनका प्रारम्भिक इतिहास | Yog Ki Uttapatti Aur Uska Prarambhik Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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योग की उत्पत्ति और उसका प्रारम्मिक इतिहास १७९ का मेद न करने वालें कठोर शारीरिक यातनाओं को सहन करने वाले तथा अन्य कई प्रकार के योगियों के उल्लेख साहित्य में हो नहीं वरच्‌ कभी-कभी शिलालेखों में अथवा मुतिकला में भी हैं । वस्तुत बुद्ध के समय से लेकर भाज तक भारत में विविध एवं विचित्र योगियों की परम्परा बनी हुई है। . वेखानसस्मातंसूत्र में भौदुम्बर वैरिश्व बालखिल्य एवं फेनप इन चार प्रकार के सपत्नीक योगियों के गतिरिक्त कूटोचक बहुदक हंस एवं परमहंस कहे जाने वाले मुमुक्षुओं का तथा सारज् एकाष्य एवं विसारग नामक योगी-वर्गों का वर्णन हुआ है। सारज़ू योगियों की एक वाखा ऐसी थी जो विमागं योग का अनुगसन करती थी । यह भनीर्वरवादी शाखा थी । जहाँ तक हमारी सुचना की पहुँच है सारज़ एकाष्य एवं विसारग शब्द वेखानसस्मात्ंसुत्र के अतिरिक्त अन्यत्र अज्ञात हैं । योगियों की एक तालिका वराहमिहिर के बृहुज्जात्तक (१५-१) में उपलब्ध है जिसमें निम्न- लिखित सात प्रकार के प्रब्रजितों की गणना की गई है-- शाक्य आजीवक भिक्षु वृद्ध (वृद्धश्नावक) चरक निर्प्न्थ तथा वन्यासन । बुहुज्जात्तक के टीकाकार भट्ट उत्पल ने जेन कालकाचाय के साक्ष्य के आधार पर निम्नलिखित नामों का उल्लेख किया है--तपस्वी कार्पालिक रक्तपट एकदण्डी यति चरक तथा क्षपणक । यह उल्लेख्य है कि कपालियों का उल्लेख ललितविस्तर तथा मैत्रायणी-उपनिषद में भी हुआ है। वस्तुत कापालिक-पाशुपत के संस्थापक भाचायं नकुलीद एक प्रसिद्ध योगी थे जिनका समय ईसा की दूसरों दती माना गया है। पाशुपत सूत्र में पाँच अर्थो अथवा तत्त्वों में से एक तत्त्व योग है । चीनी बौद्ध परिव्नाजकाचायं दवानच्वाड ने भारत के भनेक भागों में पाशपत योगियों को देखा था । योग के विकास में शैव भाम्नायों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ललितविस्तर महायानसूत्र के दुष्करचर्या परिवत में नाना प्रकार के धार्मिक ब्रताभ्यासकों की सुची एक पुरे पृष्ठ में विस्तृत है। यह सभी विशुद्ध ध्यानयोग के मन्तगंत नहीं भाते परन्तु योग शब्द के अन्तगंत आने वालें विचारादर्शों के बाहर भी इन्हें नहीं रखा जा सकता है । इसी कारण प्रारम्भ में ही हमने निवेदन किया था कि योग क्या है इस प्रइन का एक उत्तर नहीं हो सकता है । योग के विकास का इतिहास हमें बताता है कि योग योग की सभी परिभाषाओों का अतिक्रमण करता १. वेखानसस्मातंसुत्र सम्पादक डव्ल्यू०+ कैलेन्ड कलकत्ता १९२९ द्र ०--इलिपाडे योग प० र३ -रं०्। २. द्र -ए० एल० बादाम हस्टरी एण्ड डाबिट्स्स आफ दि शाजीविकासू लन्दन १९५१ पू० १६९-१७३। परिसंवाद-?१




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