दर्शन शास्त्र का इतिहास | Darshan Shastra Ka Etihaas

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Darshan Shastra Ka Etihaas by देवराज - Devraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ७ की कामंना भी होती है । कठिन से कठिन और उँत्े से ऊँचे विषयों पर दर्शनशास्त्र में विचार होता. है, इस लिए. दैशनशास्त्र के विद्यार्थी को तुच्छ वस्तुओ्रों और प्रश्नों में रुचि होनी कठिन है । ; ऑतिक जगत जीवन की रंगमूमि है । भौतिक शरीर और आत्मा कही / दनशाखर और . जीने वाली वस्तु में गंभीर संबंध मालूम होता है। . / . विभिन्न विज्ञान . शारीरिक दशाओं श्र मानसिक दशाओं में भी ' घनिष्ठ संबंध है । इस संबंध को ठीक-ठीक समभने के लिए. भौतिक-तत्वों तनयसकरपसिसिकरनकाानसकिलालान्महनतरकमगान कालप/०िस्‍ 4 इस-लिए प्राचीन दार्शनिक भौतिक और प्राणिजगत के विषय में या तो ड युक्तिपूर्ण कल्पना से काम लेते थे, या उन के प्रति उदासीन रहते थे । | परंतु द्राजकल के दार्शनिक का काम इतना सरल नहीं है । , जीवन_ के... विषय में जहाँ से..भी कुछ प्रकाश मिल जाय उसे वहां से ले लेना चाहिए. । .समाजशास्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास श्रादि भी मानव-जीवन का : वध्ययन करते हैं। इन विषयों का दशन से घनिष्ठ संबंध है। इसी प्रकार मनोविज्ञान भी दार्शनिक के लिए. बड़े काम की चीज़ है। यदि हम मानव-जीवन को ठीक-ठीक समभना चाहते हैं तो हमें उस का विभिन्न परिस्थितियों में श्रथ्ययन करना पड़ेगा । मानव-जीवन को सामाजिक और भीतिक दो प्रकार के वातावरण में रहना पड़ता है, उसे राजनीतिक, ऐसति- हासिक आर आर्थिक परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है । दमन्मेकिशीन-के (निथम व्यक्ति ओर समा और समाज के-व्यवसों-पर शासन करते हैं। इस प्रकार , दार्शनिक को थोड़ा-बहुत सभी विद्याओओं का ज्ञान आवश्यक है । प्रश्न यह दि कि 'शास््रों' के रहते हुए. “दशनशास्त्र' की श्रलग क्या त्ावश्यकता है? इन विज्ञानों और शास्त्रों से अलग दर्शनशास्त्र के अध्ययन .क्रा विषय मीं कया हो सकता है ! + दि. >न/ 2 1




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