ज्ञानसागर हिंदी इंग्लिश अनुवाद सहित | Gyansaar Hindi English Anuwad Sahit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का चुटकियों भरा मीठा लहजा था। कभी मन अपने ही ऊपर उद्धिग्नता, खिनता, उदासीनता, आकुलता से भरता तो कभी स्वरूप अनुभव की जागृति से गोरव और हर्ष के स्पर्श से रोमाचित हो उठता । भावों के इस उतार चढाव के माहौल मे भाव उठा कि क्यो न इसका हिन्दी पद्यानुवाद किया जाय । बस उन्हीं भावो का यह परिणाम था कि कुछ ही दिनो मे यह पद्यानुवाद पूरा हो गया । इस अनुवाद मे मेरे परम आराध्य पूज्यपाद गुरुदेव श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी महाराज का वरद आशीर्वाद था, साथ ही मेरे बन्घु, सयम साथी मुनि मुक्तिप्रभ की प्रेरणा प्रबल निमित्त बनी । मेरे सयम यात्रा के उद्गोधक पूज्य मातुश्री महाराज श्री रतनमालाश्रीजी म. के उपकारों की वर्णना सभव नही है। बहिन साध्वी डॉ. विद्युह्मभा का समय समय पर कभी स्नेहवश तो कभी बनावटी रोष वश साहित्यिक गतिविधियों की प्रेरणा देना, मेरे इन उपक्रमो का आधार बनता है । साचोर चातुर्मास के दौरान महोपाध्याय विद्द्र्य श्री विनयसागरजी ने इस पादुलिपि को देखा तो उन्होंने प्राकृत भारती अकादमी की ओर से प्रकाशन की इच्छा अभिव्यक्त की । इस ग्रन्थ मे जो कुछ है, अन्थकार का है । उनकी वाणी और वैचारिक प्रवाह के प्रचार-प्रसार में मै निमित्त बन रहा हूँ, यह मेरा सौभाग्य है । दैनिक स्वाध्याय के लिये यह ग्रन्थ एक पूरी खुराक है। जो दिन भर साधक को आत्मबोध की उर्जा देता है और आत्म-गुणो से साक्षात्कार करवाता है । में यही कामना करूंगा कि इस ग्रन्थ का स्वाध्याय कर साधकजन आत्म निमग्न बन, आत्म रस मे उन्मज्जन/निमज्जन करेगे और अध्यात्म अनुभव में डुबकी लगायेगे । यदि पद्य रचना मे ग्रम्थकार के भावों के विरुद्ध किसी शब्द या भाव का गुफन हुआ हो तो क्षन्तव्य हूँ । गणि मणिप्रभसागर




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