अचलदास खीची री वचनिका | Achaldas Khichi Ri Vachanika

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Achaldas Khichi Ri Vachanika by अचलदास - Achaldas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झअचलदास खीची री घचनिका [ इतिहास की रृप्टि से परीदख ) सगगग पैतामीस बर्ष पू्वें महदामतीपी भी तैस्सिठोरी ने ध््चलदास शीचौ री बचतिकर के बिपय में दे शब्द लिखे थे --- बापयोग्प के लीची शासक पथलदास जोजायत को बचसिका शिवददास लरल हारा रचित पद सिम्िस तुभासत प्तप की कृति है। माइग के पातिशाइ्द से दायरोणा है बुरे पर बेर! शाला । भचलदात सौर उसके पुर्मस्थ सैमिकों ते दुर्ग कै टूटने पर प्रपती ललताएं को प्स्ति मे पाहुति दी पौर हाथो मे तलवारें लेकर सकते हुए बीर बति प्राप्त की । मचलदास मे इसी इठोले पुद्ध कप ग्ाति इस प्रत्द में है । प्रतीत दा है कि घटतापों था प्ौर प्रस्ब थी रचता का पमय पक है । शिवदास में पपते प्रापकों बुद्ध के हाढ़ी के रूप मै अस्त किया है । धन्तिम दण तक बेरे ये रहने के बाई उद्ने भपतें प्रासया की इसी उद्ेशेप थे रद्य की कि बह पपने स्वामी लीचो-राज थी शौर्पमपी घटना को परमर कर सके । कृति थी शैशी बुरानि दंग थी प्ौर बुत बेदौस सी है । इससे थी शिरदास का समसामयिक होता सैक अतीत होता है । विस्तु हषि के ठस्य गाब्यमयी पत्पुक्तिपी घौर बल्पता्ों से बहुत कु विदत दो 'ुरे ईैं। उहरगरप में इन छत प्रयज़ बते ले सकते हैं जिहें पा बशित है कि दिल्‍ली के शासक मै---जिसगा साम दालिप पोरी 7 चा--स्वयं भाकर माशदण के बतिशाहू थी शहायता की सौर उत्तती सेता में पनैक राजदूग राज्यों के इसने थी सम्पिलित थे ।” तैश्लिगोरी मदोदप के इस मैत के दाद थो बुत्त बचमिषा के विपए में लिखा दया है बह-जटा पक मुझे काव है-यापा इुपयुक्त बजत गा हो लावाजुराइ रद है । इन्न को सर दावों हें लेकर बढ़त बम विद्रा्सों ने




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