मज्झिम - निकाय | Majjhima Nikaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे बम नि की विरोध दोगा । भूमिका बुदके मूल सिद्धान्त' बुद्धके उपदेशोंके समझनेमें सददायता मिलेगी, यदि पाठक बुद्धके इन मूल चार सिद्धा- 1 न्तों--तीन अस्वीकारात्मक और एक स्वीकारात्सक--को पहले जान लें । वे 'चार सिद्धान्त हयेहैं-- (9) ईश्वरको नहीं मानना; अन्यथा “मनुष्य स्वयं अपना मालिक है”--इस सिद्धान्तका ( २) आत्माकों नित्य नहीं सानना; अन्यथा नित्य एक रस माननेपर उसकी परिशुद्धि | और मुक्तिके लिए गुंजाइश नहीं रहेगी । | पे ( ३ ) किसी अन्थको स्वत:प्रमाण नहीं मानना; अन्यथा बुद्धि और अजुभवकी प्रासाणि- कता जाती रहेगी । ( ४ ) जीवन-प्रवाहकों इसी शरीर तक परिभित न मानना; अन्यथा जीवन और उसकी विचिश्नताएँ कार्यकारण नियमसे उत्पन्न न होकर; सिफे आकस्मिक घटनाएँ रह जायेँगी । बोद्ध घर्ममें चार बातें सर्वमान्य हैं । इन चार बातोंपर हम यहाँ अकग विचार करते हैं । (१) इंशरको न मानना इंधरवादी कहते हैं--““चूँकि हर एक कार्यका कारण होता है, इसलिये संसारका भी कोई कारण होना चाहिए; थौर वह कारण ईश्वर है--छेकिन प्रश्न किया जा सकता है--इंश्वर किस प्रकारका कारण है ? क्या उपादान-कारण, जैसे घड़ेका कारण मिट्टी; कुंडछका सुवर्ण ? यदि इंश्वर : जगत्‌का उपादान-कारण हे, तो जगत्‌ इंश्वरका रूपान्तर है । फिर संसारमें जो भी बुराइ-भलाई, ; सुख-दुःख, दृया-ऋूरता देखी जाती है, वह सभी इंश्वरसे और इंश्वरमें है । फिर तो इंश्वर सुखमयकी ; | अपेक्षा दुःखमय अधिक है, क्योंकि दुनियामें दुःखका पछड़ा भारी है । इंइवर द्यालुकी अपेक्षा क्र अधिक है, क्योंकि दुनियामें चारों तरफ़ ऋरताका राज्य है। थदि वनरुपतिकों जीवधारी न भी माना जाय, तो मी सूक्ष्मवीक्षणसे द्र्टव्य कीटाशुओंसे ठेकर कीढ़े-मकोड़े, पक्षी, सछ्छी, साँप, छिपकली, गीदुड़, भेड़िया, सिंह-व्याघ्र, सम्य-असम्य मजुष्य--सभी एक-दूसरेके जीवनके भादइक हैं । ब्यानसे देखनेपर इश्य-अइ्य, सारा ही जगत्‌ एक रोमाचकारी युद्धक्षेत्र है, जिसमें निर्बंछ प्राणी १ यह पद़ेले १९३२ इं० के “विशाल-मारत” में लेख-रूपसे निकला था । [ ड. |




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