कर्म-दहन-विधान की उपवास-विधि | Karma-Dahan-Vidhan Ki Upwas-Vidhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) ते ज्ञानवरनी घाति निज शुन, ज्ञानको निरमछ फियो । सो सिद्ध चेत्तन ज्ञान-सुख-पिंड जन्मवनकों छेदियो ॥| हीं पटत्रिशदधघिक-नत्रिशतप्रकारमतिज्ञानावरण॑विनाशनाय सिद्ध , परमोष्टिने अब निवेपामीति स्वाह्मा ॥। .... जो अयतें अर्थात्र जानें; ज्ञान श्रुत सो वरनयो । सो अंगपूरव दोय विधि श्रुति-ज्ञानवरनीसों जयो । ते ज्ञानवरनी घाति निज शुन; ज्ञानकों नि्मंल कियो | सो सिद्ध चेतन ज्ञान-सुख-पिंड, जन्मवनकों छेदियो ॥ उ*हीं द्विप्रकारश्रतज्ञानावरणरहिताय सिद्धपरमेष्टिनि अधे निवे- पामीति स्वाहा ॥ जे अवाधि तीन मकार देशो, संबे, परमाँ जानिये । इन घाति है सो अवधिवरनी, अवधिन्रय विधि दानिये । ते ज्ञानवरनी घाति निज गुन, ज्ञानकों निमठ कियो । सो सिद्ध चेतन-ज्ञान-सुर्खापंड जन्मवनकों छेदियो ॥ ४ ॥। उह्ीं अवधिज्ञानावरण-रहिताय सिद्धपरमेष्टिने अधेनिवं- पामीति स्वाहा ॥ मनज्ञान ऋजु अक बिषुरू दो विधि, पारके मनकी लखे। यम घात मनपरजय सुवरनी, ज्ञानकी घातिक अखे । ते ज्ञानवरनी घाति निज गुन, ज्ञानकों नि्भेल कियो । सो सिद्ध चेतन ज्ञान-सुख-पिंड जन्मवनकों छेदियो ॥। उ्ह्वीं मन:पयेयज्ञानावरण-रहिताय सिद्धपरमेष्टिन ' अधे निव- पामीति स्वाहा ॥




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