कर्म-दहन-विधान की उपवास-विधि | Karma-Dahan-Vidhan Ki Upwas-Vidhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.81 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ते ज्ञानवरनी घाति निज शुन, ज्ञानको निरमछ फियो ।
सो सिद्ध चेत्तन ज्ञान-सुख-पिंड जन्मवनकों छेदियो ॥|
हीं पटत्रिशदधघिक-नत्रिशतप्रकारमतिज्ञानावरण॑विनाशनाय सिद्ध
, परमोष्टिने अब निवेपामीति स्वाह्मा ॥।
.... जो अयतें अर्थात्र जानें; ज्ञान श्रुत सो वरनयो ।
सो अंगपूरव दोय विधि श्रुति-ज्ञानवरनीसों जयो ।
ते ज्ञानवरनी घाति निज शुन; ज्ञानकों नि्मंल कियो |
सो सिद्ध चेतन ज्ञान-सुख-पिंड, जन्मवनकों छेदियो ॥
उ*हीं द्विप्रकारश्रतज्ञानावरणरहिताय सिद्धपरमेष्टिनि अधे निवे-
पामीति स्वाहा ॥
जे अवाधि तीन मकार देशो, संबे, परमाँ जानिये ।
इन घाति है सो अवधिवरनी, अवधिन्रय विधि दानिये ।
ते ज्ञानवरनी घाति निज गुन, ज्ञानकों निमठ कियो ।
सो सिद्ध चेतन-ज्ञान-सुर्खापंड जन्मवनकों छेदियो ॥ ४ ॥।
उह्ीं अवधिज्ञानावरण-रहिताय सिद्धपरमेष्टिने अधेनिवं-
पामीति स्वाहा ॥
मनज्ञान ऋजु अक बिषुरू दो विधि, पारके मनकी लखे।
यम घात मनपरजय सुवरनी, ज्ञानकी घातिक अखे ।
ते ज्ञानवरनी घाति निज गुन, ज्ञानकों नि्भेल कियो ।
सो सिद्ध चेतन ज्ञान-सुख-पिंड जन्मवनकों छेदियो ॥।
उ्ह्वीं मन:पयेयज्ञानावरण-रहिताय सिद्धपरमेष्टिन ' अधे निव-
पामीति स्वाहा ॥
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