हिंदी विश्वकोष [भाग ११] | Hindi Vishwakosha [Part 11]

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Hindi Vishwakosha [Part 11] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वारगोप--द्वारबती ' द्वारंगोप ( से पुण् ) रे गोपांयति शुप-अंध.। हार पाल । झरदचार स० पु० ) विघाइको एकं रोति जो बरातके इकौवांलेके दरवाजी पर पइ'चने पर दोती है। हारकि'काई ( हि स्रो० ) १ विवाइमें एक रोति । लब विवादका घर वध, समेत अपने घर आता है, तब कोह- “शरके दरवाजे पर उसकी बहन उसकी राइको रोकती ह्ष पिता द्वार पर स्थापित कलथ श्रादिका पूजन करके अपने इश्ट मित्रों सचित वरकों उतारता 'प्रौर मधुपंक देता है। ९ जे नियो कौ एक पूजा... की दारवलिभुज्ञ (8'० पु०) दारदत्त' वलि भु'क्त भुज-किप.! १ व, बगला । २ काक, कौवा । हारवन्त्र (स' ० क्लो ) दारवन्धक' यन्त्र मध्यलो० कमंधा० । तालक, ताला । है । ऐसे समय जब बर उसे कुछ नेग दे ढेता है, तब वच। हारवती ( स ० स्त्रो० ) दाराणि सन्त्यत्र, वा चतुव णॉना! रह छोड़ देतो है। २ दारंर'काईमें दिये जानेका नेग। दारदातु ( स* मु० ) दार' ददाति दा-तुनु! भूमिसद हु |. - हे दारदारु ( स'० पु० ) १-शाकइत्त ।. २ भ्ूसिसह् ठत्त ! दारंप ( स० पु० ) हार पोति पा-कझ। १ हाररचक। २ विश । * दारपरण्डित ( स'० पु०् ) बच प्रधान पण्ड़ित जो किसी राजाके दरबारमें रदते हों । दारपति ( स'० पु० ) दारस्य - पतिः <-तत्‌ू। द्ारपालं ! दारपाल (स'० पु०) दार' पालयतोति पालि-अण, । १ दार- रचक्ष । इसका पर्याय--प्रतौहार, दा:स्थ, दःस्थित, दशक, वेत्रधारक, दौः्साधिक्र; बत्तरूक, गर्वाट, 'दरण्डवा सो, दृ।रस्थ, चत्ता, ारपालक, दोवारिक; वेत्रो, उत्स।रक आर दण्ड़ो है। दौवारिक देखो । ताशोंकी पूजा-पहले को जातो है । ₹ तौथ मेट । महा- भारममे -इसे सर स्रतोके किनारे लिखा है । इसमें स्नान दानाद़ि करनेसे अग्निोम यन्न का फल डोता है । इारपालक ( स'०-पु० ) पालयतौति' पालि-खुल_ दाराणां पालक' दारपाल-खाध कन्‌ । द।रपाल । कौ सन्तति । डोढ़ी, दद्दलो जज दारपूजा ( दि'० स्त्री ) १ विवाइमें एक कता। जब बरातरे साथ बर पहले पहल आता है, तब कन्या वाले- के दर पर यह शत्य किया जाता हैं। इसमें कन्याका मोक्तदाराणि सन्त्यत्र दारा सतुप. मस्य वः । द्वारका | इसका पर्याव--दारका, द।रावतो, वनसालिनो, द्वारका, अब्पिनगरो और दारकपुरो है। ' इस पुरोके विषयमें ब्रह्मवँ व्त पुराणमें खोकष्णके जन्मखण्डमें इस प्रकार लिखा है-- | ' शीक्षणने समुद्रके पास पहुंचकर उससे कहा था, हे समुद्र ! मैं यह ' एक मुरो बनाना चाइता हू, इसलिये तुम एकसो योजन विस्ढत एक स्थल प्रदान करो, पौछे मैं तुम्हे प्रत्यपंण कर दू'गा ”” इस तर. ससुद्रके किनारे स्थल पा कर सकने विश्वकर्माकों भ्रत्यन्त भ्राथय- ननक यथा सुद्दढ़ पुरी बनानेको श्राज्ञा दो ।. इस पर विश्वकर्माने श्रोक्नणसे कहा, है भंगवन ! किस प्रकारकी , पुरी निर्माण करूंगा ।” यौक्क्णुने कहा, कि एक ऐसा ! सुमनोहर पुरो बनावों जो एक सी योज्न विस्त,त हो २ तंन्त्रोक् 'ट्ेवतामेद,,दाररक्षक देवता । इन देव“ और जिसमें प्मगगाद़ि मणि जड़ो हुई हों । कुवेरके मेज ': दुए ७ लाख यक्षों और शडरके मेजे हुए वेतालकों सक्ा- यतासे विखकर्मानि एक अपूव' पुरी निर्माण को । स्रगं वा संत्य में इस तरइको मनोहर नगरी भ्रौर कद्दीं नहीं थी । इस पुरोके तेजसे सूय भो पराजित इए थे। यह ' तोघोंमिं एक प्रधान तोथ है। . चारपालिक (स'० पु० ) दांरयात्या' अपत्य' दारपालो |! रेवव्यादिल्लात्‌ ठक.। दारंपांलीका अपत्य, दारपाले | तोथ नहीं है।यह सभौ तोधों से खेछ तथा पुर्यप्रद है । ' “इस पुरौमें प्रवेश करनेंसे दो सब 'प्रकारके लन्मघन्पेन रपि्ड़ो (स' ० स्त्लो०) दारस्य पिंड पिंथिडिकेव । देदलो; । खुग्ड़न हो जाते हैं। यह तोथ दान; देवंतापूजा तघों - गडगदि तोध से चतुगुण फलदायक है। - इस द्दारका-पिदतोंध के जल सा श्रोर दूखरा कोई इरिवशके ११६वें अध्यायमें दारकापुरोका विषय , विशेष रुपसे वर्ण त हैं । इरिव 'शर्में एक लग लिंखा है कि जहां चारों वर्कीके समस्त दर विद्यमान हैं; जहां




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