विश्वकोष [भाग 14] | Vishwakosha [Part 14]

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Vishwakosha [Part 14] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सानाध्य--सानेयों रहते हैं, कत्र देते हैं । इनकी कब्र खेदने आर गाठने- को क्रिंग मुखडमाना हो तरह है। किन्तु शवाजुगमन नहीं करते 1. चार आादमों ए6 चारपाई पर स्ूतककी खुडा कर कच्र स्यानमें ले जाते और कब्र में पूर्व पाश्चम लम्बे माचसे खुला कर ऊर्रसे मिद्ट' डाल देत हैं। शिए पश्चिमरा मोर रखते हैं । अन्त्ये।पन्तिपा समाप्त दोने पर घर लौय गाते है । सुनाशोचधघारों चार दिनों तक मकला निवास करता दें आर स्वपा शी रददता हैं । भजन _ के पदले प्रति दिन सुतकों म्रं तात्माके उद्द श्यसे पक सक्तापिएड यूदप्र,ज्णम रख फर तव चड भेःजन वःरता है | चोथे दिन श्राद्धोपलक्षम स्वज्ञातिया का साज देत हैं। . | बाप या चोवोख दिनो पर कनफरटोंके! भाजन कराया , जाता है । थे पक ईश्वरके सगवान, परमेश्वर था नारायण क्- के पुर्दार्ति हूं । ला सौर धिपडुध्रस्त व्यक्ति देवों ये कुमारोमाज्न सा कराने हैं। जलेश्नर जौर अमर के मि्याँ साइव के प्रति ये भक्ति रखते है । चौर्ययुत्ति दो इनको प्रधान उपशीविक्ा है । सानाध्य ( स० क्ला० ) सनाथ भावे ष्यपन्नू |. सनाधका भाव, ना ययुक्तता | सानि-सुनलमान फकीरसम्प्रदायधिश्प । ये लोग सानान या साइन, साई चामस परिचित दे' । पश्चाव प्रदेशों सिख सम्प्रदायक +थय सुलावदासी या ख'ई नामर एके रुचतन्ल सम्यराप है 1 थे दाग ईश्वरकी सच्चा स्वोह्ार नहीं करते । आात्मारा निरन्तर तुति साधन यीौर मे'गजुन हो इनका छूड मन दैं । ये छाग मद्यपान, ख्रो-सडराल जोर अन्पान्य दे दिक खुखभोगमें दिन विनाते हैं। व्यसिनार ओर मस्पान्य कुक्तिग यदि खुष्यलनक हा, ते बह कार्य करनेसे दे लोग बाज नहीं आते । इस नामसे पुषपरे जानेचाले सुललतान सम्पदायके साथ इनका काई सामज्स्प या रास्पस नहीं है । दानाों सस्प्र दाय आनार ब्य रद्दारमें सस्पूर्ण पृथक हैं | साचिका ( स० ख्रो० ) सनति. खुश्चरमिति पणु दाने ण्युल , यापि अत इत्वं 1. चंशों सुरल्ठीं । सान। ( दि'० सख्रोः ) १ चदद भोजन जा पानोमें स्ान कर पद पशु्ोंरों खिलाया जाता है। नाँदमें भूमा मिगे। देते हैं और उसमे खो, दाना, नमऊ आाद छेड़ कर उसे फशुमंकों िलात हैं. इसो ने सानों कदतें दें। २ मन्ुवत रीनिसे पऊूमें मिलाप हुए कई अ्ह्ारके खाद्य- पदर्थ। ३ गाड़ीके पद पमें छगानेको गिटटक् । ४ सन देखी । सानी ( म० बि० ) १ द्वितोष, दूसरा । २ समानता रखने- चाला, चरावरी हो । सानु ( स ० पु० झो० ) सन-सेवायां ( दवनि जनीति | उण १३) इचि जुणू । १ पवेतसम भूमाग, गिरिंतट |. २ वन, जड़ |. ३ शिखर, पर्वाकों चेएटो । ४ अन्त, लिंरा । ५ सपम्तल भूमि, चोरस जमोन । ६ मार्ग, रास्ता । ७ पक्लच, पत्ता । ८ सूर्यों। ६ कोचिद, पशिडन | पं द् , साघुर ( स'० लि० ) १ समुच्छित, बहुत ऊंचा । सच- कालिकाफो पूरा करत हें। प्रीतिक छिये कमी कमी अन्न ननननननणा स्वॉर्थों कनू | २ सु देखो | सुन ( स० छ्लो० ) सानी जायते इति जन ड1 8 प्रवो- णुडरोक, पु डेगी । ( पुर) २ दुस्युरू नामक चुद । ( लि० ) ३ जसुगके साथ चत्त मान, उजुनरि शि्ट | सनचुनासिक्र ( स'० लिन ) अज्लुनासिक चर्णक सोथ चर्तत - मान | व्याकरणकफे मतसे ड, न, ण,न, म ये सुबर वर्ण अन्लुनासिक है, इन चर्षी'क साथ जा चर्ण रहता दै, उसे सानजुनासिक कहते है । सःजुनासिक्य ( स'० लि० ) सालुनासिकवर्णपिशिए | स जुप्रस्थ ( स० पु ) दानरमेद | (रामा० ध1१1३६) सानुप्रास (सं ० लि ) भललुपासेन सह घत्त मान: | अनु प्रास मलडारके साथ बत्ते सोच, जिसमें अनुप्रास अल- ड्ार हो । भू. त्पनुपाठ देखे । सालुपानफ (स'० पुर) पुडरोक चूक, पुष्डिरो (विद्यफनि०) साचुरुद ( स'० लि० ). पचंतस'नुदेश स्थित, जा याटो पर हो | ( राभा० इ७ह|४४ 9 सालुषक्ू ( स ० गध्य० ) स चुसड्, सातत्य । स जुष्टि ( स ० पु० ) गेलघ्रवत्त के ऋ पमेद । सानेपिक्रा ( स'० स्त्री० ) सानेयो स्वार्ध-जन्‌ | चंशोभ द, पक्ष प्रकारकी मुरली | सानेयो ( स*० लि० १ चेणी, मुस्ढी ।




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