भारत भ्रमण भाग तृत्तीय | Bharat Bhraman Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.81 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३ _ गया-१८९३े, (६९९ )-
. दीवारमें पावतीजी; पश्चिमकी दीवारसें सूप्य नारायण औरं गणेशजी और लक्ष्मीजीकी'-
सूर्तियाँ मतिष्ठित हैं । लोग कहते हैं कि नह्मा उत्तर मानसमें श्राद्ध करके इसी स्थानसे
मौनव्रत घारणकर सूय्यकुण्ड तक गये, इसी लिये सम्पूर्ण यात्री उत्तर सानसमें पिण्डदान
करनेके पश्चाद् मौन होकर सूय्यकुण्डपर जाते हैं_ ।
उदोची, कनखछू और दृक्षिण मानस विष्णुपद्के मन्दिरसे करीब १७५ गज उत्तर
९५ गज लम्वा और ६० गज चौड़ा दीवारसे घेरा हुआ सूथ्यकुण्ड तालाब है । बगलॉपर
पत्थरकी पुरानी सीड़ियाँ छगी हैं. । कुण्डके उत्तरका दिर्सा उदीची, मध्य हिस्सा कनखल, .
और दक्षिण दिस्सा दक्षिण मानस तीथे कहा जाता है। तीनों स्थानों पर तीन चेदीके
२ पिण्ड दान होते हैं सूर्ययकुर्डके पश्चिम युम्बजदार अन्वेरे मान्द्रिमें पुराने ढंगकी सूर्य्य-
नारायगकी ,चतुर्ुज मूंचि खड़ी दे जितको दृक्षिगाकं कहते हैं । जगमोहन पुराने ढाचेका
आंगेकी तरफ छम्बा है ।
जिह्दालोल--सूर्य्यकुण्डसे कशीन ८० गज दृद्षिण फरगूके किनारेपर जिह्ालोल तीर्थ
इु, वहाँ सैदानमें एक पीपठका घक्ष और एक ओसारा है, जहाँ पिण्डदान होता है |
गदाघरजी--विष्शुपद्से ३० गज पूर्वोत्तर फल्पूके किनारेपर पूर्व मुखका शिखर-- 7
दार गदाघरजीका मन्दिर दे । अन्वेरेमें गदावरजीकी चतुर्मुज मूर्ति चबूंतरे पर खड़ी है ।
मन्दिरके आगे तेहरा जगमोहन है । पूर्ववाले जगमोददनमें करीब एक गज अँची दोनों
सुजाओंको नीचे ठटकाये हुए एक मूर्ति खड़ी हु, जिसको लोग रामचन्द्र कहते हैं । इसके
दृद्दिने हाथके नीचे एक पुरुपकी और वायें हाथके नीचे एक खीकी छोटी मूर्ति और
इसके वायें दूसरी जगद तीन सुखवाली एक चतुर्मुज मूर्ति है । पंचतीर्थीके पिण्डदान
द्ोजानेके पीछे पच्चाशतसे गदाघरजीको खान कराया जाता हैं । मन्दिरके पूर्व गदाधघर घाट:
पर पत्थरकी २९ सीढ़ियाँ चनी हैं गदावरजी के मन्दिरसे उत्तर दिखरदार सन्दिरिमें करीब.
3 द्ाथ उँची गयाश्री दूचीकी अ्रशुजी मूति खड़ी है |
(४) कृष्ण दुवीयाके दिन तीन चेदी पर पिण्डदान' होता दै,--मतह्नवापी, धर्मों
रण्य और चोघगथा । गयासे ६ मीछ दृच्चिण चोधगया तक पक्की सड़क हैं. परन्तु सरस्वती
मतंगवापी और घर्माएण्य होकर जानेवाले याजियोंको ७ मीलका रास्ता पढ़ता हैं; । ययासे
करीव दे मील जाने पर पकी सड़क छूटजाता है । बद्ौँसे पैदल अथवा खटोली पर एक मीछसे
अधिक पूर्व दक्षिण जाने पर सरस्वती नदी मिठती हैं । फरगूके दोनो तरफ चाछका सैदान
है । सरस्वती नदीमें स्नान और तपंण होता है । किनारे पर छगभग ४ गज ऊंचा सरस्वतीका
मन्दिर है । जिसमें यात्री सरस्वतीका दुशन करते हैं । मन्दिरिके भीतर और चाहर कई
वौद्धमूतियोँ देखन्भ आती हैं. । मन्दिरिके उत्तर एक चबूतरे पर एक जोड़ा चरण चिह्ठ
और १६ रिवलिज् हैं जिनमेंसे दो भें चारोंओर एक एक मूर्तियाँ बनी हैं. । ऐसे छिज्ञ
वोघगयाके मन्द्रिके पास बहुत देख पड़ते हैं । पहले सरस्वती के सन्दिरके चारों तरफ.
मकान थे, अब तक भी एक तरफ खड़ा है ।
मतगवापी--सरस्वतीसे १ सीलसे अधिक दक्षिण मतंगबापी नामकी छोटी वावछी
है | कुछ दूर चौड़ों राद और कुछ दूर .पगडण्डी मिछती है [। वापीके उत्तर बगछमसें सीड़ियां
और पंश्चिमोत्तर द्वीवारक भातिर ४. मन्दिर खड़े हैं, जिनमेंसे दो मामूढछी कदके नए शिव .
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