प्रीतम की गली में | Pritam Ki Gali Me

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Pritam Ki Gali Me by गुरदास राम - Guradas Ram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( (१ 2) सन्ध्या का समय था | शोमनाथ प्रति दिन की भाँति बाग की सेर करने गया । शचानक उसकी निगाह एक नवयुवती पर पडी और यह उसके प्रेम ज्ञाल में फस गया 1 वस फिर क्या था उस स्त्री की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए उसने झपनी सारी सम्पत्ति थोड़े हो समय में न कर दी श्र गले में कफनी डाल कर दिन रात अपनी प्रेमिका की गली में घूमने लगा । शहर के लोग उसकी इस गिरी हुई दशा को देख कर दुसी हुआ करते और श्क्सर सममकाने. घुकाने का प्रयल करते. लेकिन जैसा कद्दा दै--दाजफल जोशे जुनू हैं. मेरे दीवाने को ओमनाथ रस से मस से हुआ और दुनिया की लान तान से बेपरयादद रहते हुए लोकिक प्रेम की संजिलें तय करने में लगा. रहा यहाँ तफ कि. यह दशा हो गई कि अय इसके पास न स्याने को दाना था न पहनने को चिथडा था । अनाथ कच्चे फी सी हालत थी श्द ञ््द श्र हज सबेरे का समय था 1 ओोमनाथ अपनी प्रेमिका के दर्शनों के लिए दरवाओें पर राह देखता खड़ा था कि




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