कामुक अथवा सतीत्व - महिमा | Kamuk Athwa Sateetwa-mahima

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kamuk Athwa Sateetwa-mahima by रामनारायण मिश्र - Ramnarayan Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामनारायण मिश्र - Ramnarayan Mishra

Add Infomation AboutRamnarayan Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ रे यूनीवर्सिटियों की बी० ए० परीक्षा की पाठ्य पुस्तकों में रहा करता है । कोमस स्वांग के रूप मे एक दृश्य-काव्य है जो झल झाफ़ न्रिजवाटर जब वेल्स देश के प्रेसीडेर्ट पद पर नियुक्त हुये थे उस शुभ अवसर पर झमिनय द्वारा लोगो को दिखाया श्यौर सुनाया गया था । यह एक ऐसा समय था जब राग-भोग सुरापान व्यसम स्वच्छन्द राजकीय और सस्रद्ध जीवन के लक्षण माने जाते थे । इस कुप्रथा का तकंमय खण्डन करने का साहस अपगेज़ी कवि- कुल-श्रेष्ठ मनीषी मिल्टन ने एक राजसभा के महान उत्सव के समय पर किया था । यह उसके शुद्ध हृदय की प्रबलता और मिर्भीकता का ययोतक है । इज्लैरड के राजा जेम्स दी फस्ट के काल में यह प्रथा व्यव- दार रूप में प्रचलित हो गई थी कि जब कोई राजा या पद्वीधारी कोई उत्सव मनाता था या राजा देश के धनी प्रतिष्ठित भद्र जनों को निमत्रित करता तो झावश्यक था कि वह एक स्वाँग का झामिनय भी दिखाने का प्रबन्ध करता । झाज से तीन सौ बर्ष पहिले की बात है जब यह कोमस की रचना झल ाफ ज्रिज- वाटर के मगलोत्सव के उपलब्धय में स्वांग के रूपक में खेली गयी थी । इसके कर्त्त-धर्त्ता लाज़? थे जा अल के कृपापात्र और उस समय में गायनाचाय माने जाते थे । कोमस काव्य से सद्य की निन्‍्दा दुराचार व्यसनमय जीवन की दुदंशा सव का अ्बल




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now