अनुवाद प्रक्रिया | Anuvad Prakriya

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Anuvad Prakriya by रीतारानी पालीवाल - Ritarani Paliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16. अनुवाद प्रक्रिया फाठगत अनुवाद समानाथंक लक्ष्य-भाषा पाठ का वह अंग होता है जिसे तभी परिवतित् किया जा सकता हैं जब ख्रोत-भाषा पाठ के समकक्ष अंश को परिवर्तित किया जाएं । जैसे-- मेरा वेठा आठ साल का है । इसका अप्रेजी अनुवाद हुआ-- गुण 00 15 दाद्टाहां कववा5 016 | यहा पर मेरा बेटा का पाठ समानाथक हुआ-एविप्र 0 । लेकिन जब मूल पाठ या स्रोत-भाषा के पाठ में अस्तर करेगे तुम्हारी बेटी आठ साल की है तभी लक्ष्य-भाषा का णठ समानाधेक बदल जाएगा- एप प80 पिला 15 हां कब8ा5 010 यहा यह बदलाव तभी आया है जब हमने स्ोत-भापषा के पाठ मे परिवर्तन किया हैँ । लम्बे पाठ के अनुवाद के दौरान प्राय प्रयुक्त होते वाले स्रोत-भापा के गब्दो के लक्ष्य-भाषा मे समानाधंक अवसर एफ से अधिक हुआ करते हैं। सन्दर्भ एव प्रसंग के अनुसार भी उनमे अर्थ-भेद हो जाना स्वाभाविक है । कारण किसी भी शब्द का कोई भी शब्द अन्तिम समानार्थी णब्द नही माना जा सकता । अनुवाद- समावार्धकता की सम्भावनाओं के आधार पर शब्दों को खोजने का प्रयास करते हैं जिसमे सीमाओ को बचाया जा सकता है । अनुवाद उसी स्थिति में अनुवाद कहा जा सकता है जब स्रोत-भाषा का सम्पुर्ण सत्दर्भ और प्रसंग लक्ष्य-भाषा में व्याख्य।त्पक आकृति पाने पर थी. स्रोत- भाषा से दूर न जा पड़े क्योकि अपने समग्र रूप में अनुवाद एक भाषा के भाव एव विचारगत प्रतीको का अन्य भाषा के भाव एवं विचारपरक प्रतीको में प्रततिस्थापन है ।




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