कलाविलास | Kalavilas

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Kalavilas by अम्बालालसूनु - Ambalalasoonuपाण्डे रामप्रताप खर्रा - Paande Rampratap Kharra

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पाण्डे रामप्रताप खर्रा - Paande Rampratap Kharra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दम्मोत्पात्ति । (९. 3. माई हैं उस की छ्ली का नाम डुटिलाकति है औौर लाभ का पाता तथा दम्स का पुत्र डकार है दम्भोत्पत्ति । सृष्टि की आदि में सगवान्‌ प्रजापति चोदह छोक और प्राणीमात्र कीं रचना कर अन्त में बहुत काल तक निव्छ वैठे रह । कायेरहित बेठे रहने के समय म॑ त्रह्माजा अपने मन में विचार करने ठगे कि मेरी सजी प्रजा का स्थिति कैसी है सो जानना चाहिये । इस विचारकों पूरा करने के छिये समाधि लगाकर चिचाता ने अपनी प्रजा की ओर इष्टिपात किया तो प्रजामात्र को निराघार देखी । बिचारी प्रजा जेसी स॒जी गई थी तैसी निष्कपट थी और सत्यताकें सहारे झुक रही थी । यह देखकर प्रजापति विव्वार करने गे कि यह प्रजा अपन झुद्ध मन की ओर मभोढी है इस कारण वह ॒ द्रव्योपाजेन नहीं कर सकेगी और न. इस का व्यवहार किसी प्रकार चढेगा ऐसा होने से अन्त में सुष्टि- स्वक्र का घरमना बंद होजायगा । अतरब ऐसा प्रयत्न करना चाहिये कि यह स्थिर और झूत्य सृट्रि हिल्चछ करने ढगे इस क व्यवहार चलने गे और सुट्रि चक्र अपना कार्य आरम्भ करे | मन में ऐसा इढ निश्चय करके क्षणिक नेत्र मूद कर माया की समाधि चढ़ाई अपनी भोढी माठी प्रजा को जारजी- बिका औौर वैभव देनवाला एक अपना विश्वासपात्र महादव उत्पन्न किया सौर उसका नाम दम्मदेव रक्‍्खा । इस प्रकार से उत्पन हुआ साष्टे का आधार दम्मदव दूभों का पूछा पुस्तक माढा जलका कमण्डढ उस के उन्तःकरणकी कुटिल्ता-बक्रता को प्रगठ करनेबाठा चक्र सीग दण्ड काले हारिणका पवित्र चथे और चरणपादुका डेकर क्रोघारूढ नत्राके कनारी से हुंकार सहित भुकुर्टी और मुख की चश्चठतादें व््ारण से तथा अधिक तिरसकार के कारण से ऐसा प्रगट करता डुवा कि मैं सवें में श्रष्ठ हू और किसी दूसरे से स्पशे न होजाने को सावघानी रखता एवस पवित्रता को प्रद्माशित करता झुआ ब्रह्मढोक में ब्रह्मा बंद पास गया ब्रह्म सभा में जाकर वह आसन पर मौनावठम्बन करके खड़ा रहा परन्तु नीचे न बैठा । उस ने अपने कान पर बडी पत्रित्री चढ़ा रखी थी हाथ जल्से टः स्वच्छ किये इुए थे घुर्लीहुई मूठीवत्‌ मस्तक पर टभे से पिरी हुई शिखा कीं




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