नालन्दा | Nalanda

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Nalanda by हीरानन्द शास्त्री - Hiranand Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नालन्दा <.. आचार्य हैं जो सब विषयों पर अधिकार रखते हैं और लो अपने झाष्य गुण्चों के कारण सबमें खेषप्ठ माने लाते हैं । यहां प्रति दिन प्राय; एक सौ चबूतरे या मंच बनाये जाते हैं जिन पर से मदह्ात्मा लोग उपदेश करते हैं लो सब विदार्धियों को अवश्य सुनने पड़ते हैं। यहां जितने साधु लोग हैं उनका आचरण सदा शुद् रहा है। तभी लो गत ७०० वर्षो से, जब से नालन्दा मछाविदा- लय का सूचपात इआ, कोई अपराधों नहीं निकला । यद्ां के राजा ने एक सो ग्राम नालन्दा को दे रक्‍्खे हैं, जिनका सब प्रकार का कर छोड दिया गया है। इन ग्रामों के २०० निवासो विद्यार्थियों के लिये प्रतिदिन नियत प्रमाण में चावल, टूध और माखन जुटाए जाते हैं जिससे छाचीं को किसो प्रकार को “प्रतोच्चा' नहीं करनो पड़ली । नालन्दा में रहने वाले साधुभीं को योग्यता और बुधि- वेचचग्य सुविख्यात है। इनका चाल चलन और धास्क जोवन निष्कलंक है । यहां सबको सच्चे ऋदय से धामिक आदेशों का परिपालन पूण रूप से करना पडता शै। यहां रात दिन बड़े बड़ गूठ विषयों पर शास्त्राथ पोते रदते हैं लिनसे क्या बुठे क्या जवान सब को सन तहि छोतो है। जिनका ज्ञान केवल जचिपिटका तक हो परिमित है उन्हें तो लख्ञा से अपना मं छिपाना पड़ता है ! इस मछाविशार में भारतवर्ष के भिल मिस्र प्रार्तों से शास्त्रप्रेमो शास्त्राथे के लिये आते हैं । दे




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