साम्रज्यवाद | Samrajyabad

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Samrajyabad  by मुकुन्दोलाल श्रीवास्तव - Mukundilal Srivastava

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दाशनिक सत जमेन जातिमें दृष्टिगोचर होती थी उतनी शायद ही दनियाकी और किसी जातिमें देख पड़ती दो । उसने तो यददाँतक लिख सारा था कि इस जातिमें संघटन और व्यवस्था करनेकी क्षमता आ ही नहीं सकती ऊपर जो कुछ कहा गया है उसका तात्पर्य यही हे कि जर्मन या अन्य किसी भी जातिके लोगोंका यह दावा करना कि इंश्वरने जन्मसे ही हमें विदोष-गुण-सम्पन्न अथवा धमतावान बनाया है व्यथे है। यदि अनुकूल वातावरण पव॑ राजनीतिक एकता और स्वतन्त्रता पघाप्त हो तो प्रायः प्रत्येक जाति चैसी ही क्षमता वेसी ही वीरता एवं भिन्न भिन्न सेत्ोंमें वेसी ही दश्ता घ्रदर्शित कर सकती है जैसी कोई समुन्नत और सुसभ्य कह्दी जानेवाढी जाति प्रकट करती हे । उदाहरणके छिए तुर्की ओर रूसको ही ले लीजिए । युद्ध समासतिके बाद अनेक बड़ी बड़ी कठिनाइयोंका सामना करते हुए भी किस दृढ़तासे ये दोनों राष्ट्र अपने मागंपर अग्रसर होते रहे हैं यह वतढानेकी आवदयकता नहीं है । क्या सामाजिक क्या राजनीतिक क्या आर्थिक और क्या घार्मिक स्ेत्रमें इतने थोड़े समयके भीतर दी इन देदोका जो कायापलट हो गया है उसे देखकर आश्य्य होता है। यद्यपि समस्त संसारके पूँजीवादी राष्ट्रीने रूसके प्रयल्लौकों विफल चनानेमें कोई बात उठा नहीं रखी फिर भी उसके अद्स्य उत्साह और अप्रतिद्दत दढ़ताके सामने उनकी दाल नहीं गठने पायी । अब तो उसके विरोधियों तकको स्वीकार करना पड़ा है कि रूसवाले बिछ- कुछ निकम्मे और दशक्तिद्दीन नहीं हैं अंग्रेजों जमनों अथवा फ्रांसीसियोकी तरह महान काये करनेकी झमता उनमें भी है । ध्छै




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