नाड़ीज्ञान तरंगिणी तथा अनुपात तरंगिणी | Nadigyaan Tarangini tatha Anupat Tarangini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.57 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषानुवादसमलंकूता । ड-
गति चलती हे, पित्तरोग में काक, लाव, सेड्क
इत्यादि गति और चपल चलती है, ऐसे ज्ञानी
कहते हैं ॥ ३२ ॥।
राजदंसमयूराणां पारावतकपोतयोः ।
कुक्कुटादिगति धत्ते मनी कफसंगता ॥३३॥।
टीका-राजहइंस, मोर, कवूतर पड़खो श्र
कुस्कट | मुरग ) इनकी गति से कफकी नाड़ी
चलती है ॥ ३३ ॥
सपादिगतिकां नाडीं काकादिगतिकां तथा ।
वातपित्तामयोमिश्रां प्रवदंतिभिपर्वराः ॥॥३४॥।
टीका--जो नाड़ी कही सरदिक गति और
कहीं काकादिक गति मसिशित चलें तिसको वैद्य
श्र वातयपित्त सिश्चिल रोग को कहते हैं ॥ ३४ ॥
दंदशूकगर्ति नाडीं कदाचिद्ध सगामिनीम् ।
कफवातामयोन्मिश्रां प्रवदंतिथिषग्वराः ॥३९॥।
टीका--अउजो नाड़ी कदाचित् सपंगति और
कदाचित्_ हंसगति से चलति है उसको श्रेष्ठ वैद्य
कफ चानसिशित रोगकी कहते हैं ॥ २४ ॥
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