नाड़ीज्ञान तरंगिणी तथा अनुपात तरंगिणी | Nadigyaan Tarangini tatha Anupat Tarangini

Nadigyaan Tarangini tatha Anupat Tarangini by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषानुवादसमलंकूता । ड- गति चलती हे, पित्तरोग में काक, लाव, सेड्क इत्यादि गति और चपल चलती है, ऐसे ज्ञानी कहते हैं ॥ ३२ ॥। राजदंसमयूराणां पारावतकपोतयोः । कुक्कुटादिगति धत्ते मनी कफसंगता ॥३३॥। टीका-राजहइंस, मोर, कवूतर पड़खो श्र कुस्कट | मुरग ) इनकी गति से कफकी नाड़ी चलती है ॥ ३३ ॥ सपादिगतिकां नाडीं काकादिगतिकां तथा । वातपित्तामयोमिश्रां प्रवदंतिभिपर्वराः ॥॥३४॥। टीका--जो नाड़ी कही सरदिक गति और कहीं काकादिक गति मसिशित चलें तिसको वैद्य श्र वातयपित्त सिश्चिल रोग को कहते हैं ॥ ३४ ॥ दंदशूकगर्ति नाडीं कदाचिद्ध सगामिनीम्‌ । कफवातामयोन्मिश्रां प्रवदंतिथिषग्वराः ॥३९॥। टीका--अउजो नाड़ी कदाचित्‌ सपंगति और कदाचित्‌_ हंसगति से चलति है उसको श्रेष्ठ वैद्य कफ चानसिशित रोगकी कहते हैं ॥ २४ ॥




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